SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जलकाय-देखें-अप्काय । जल्प-छलयुक्त वचन। जल्ल-मल, पसीना आदि। जाति-उत्पत्ति स्थान । जितेन्द्रिय-इन्द्रिय और मन का निग्रही आत्म-विजेता। जिन-इन्द्रिय-जयी तथा कषाय-जयी वीतराग अर्हन्त भगवान् । जिनकल्प-संयम की प्रखरताओं के पालक एवं ऋद्धि-सिद्धि सम्पन्न साधु । जीव-शारीरिक-प्राण एवं चैतन्य-प्राण से जीवन यापन करने वाला अमूर्त द्रव्य ; कम से आबद्ध आत्मा। जीव समास-जीव-स्थान , औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक और पारणामि की गुण । जीवास्तिकाय-जीव-प्रदेशो के समूह । जुगुप्सा-ग्लानि-भाव , अपने दोषो का संवरण और दूसरो के दोषो का प्रगटन। जैन-सदाचार एवं सदविचार की अस्मिता को आत्मसात करने वाला जिन-अनुयायी। [ ५४ ]
SR No.010280
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy