SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चरणानुयोग - संयम के मूल गुणों और उत्तर गुणो का विधान । चश्मशरीरी - तद्भव मोक्षगामी, अन्तिम शरीरधारी । चर्या - १. आचरण, २ अनुष्ठान, ३. विहार, ४. आवश्यक क्रियाओ का पालन । चर्या - परीपह-- गमनागमन की वेदना से व्यथित न होना । चातुर्मास - चौमासा वर्षावाम | , चारण- आकाश मार्ग से गमन करने की अदि विशेष, शक्तिविशेष अथवा उसमे सम्पन्न साधु । चारित्र - आत्म-विशुद्धि का प्रयाम, शुभ कर्म में प्रवृत्ति और अशुभ कर्म से निवृत्ति । चारित्र मोहनीय - गयम-ति का अवरोधक | चारित्र मंक्लेश- आत्मा का अविशुद्ध परिणाम धारा मे चारित्र वा पतन | खित्-स्वम्प का अनुभव, चैतन्य-शनि । चित्त-१ आत्मा का चैतन्य परिणाम, २. भुन, भविष्य श्रीर वर्तमान काल का सामान्यतः साक्षात्कार | चिन्ता - १. विविध प्रकार के पदार्थों का विषय करने वाला [ ५० ]
SR No.010280
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy