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________________ कषाय-समुद्घात-कषाय की तीव्रता से जीव प्रदेशी का शरीर से विगुना फैलाव । कषाय-संल्लेखना-कषायो की कृशता; परिणामों की विशुद्धि । कापोत-लेश्या-तीमरी लेश्या, भावो की कलुषता । काम-१. पुरुषार्थ, २ अभिलाषा, ३. दुष्ट अभिप्राय, ४ इन्द्रियो के विषय । काम-कथा-विषयामक्ति जागृत करने वाली चर्चा । काय-अनेक प्रदेशो का समूह , जीव के स्थावर एवं त्रस जाति के शरीर , औदारिक आदि शरीर । कायक्लेश-तप-विशेष, ग्रीष्म, शीतकालीन, दुःसह शारीरिक उपसर्ग। काय-गुप्ति-शारीरिक प्रवृत्तियो का निरोध । कायोत्सर्ग-आभ्यन्तर-तप ; अहकार एवं ममकार रूप संकल्प का त्याग । निर्धारित समय के लिए शरीर को काष्ठवत् समझ निजगुण/जिनगुण स्मरणपूर्वक शरीर से ममत्व का त्याग , व्युत्सर्ग नामक तप । कारक-क्रिया से युक्त द्रव्य । कारक-सम्यक्त्व-शास्त्रोक्त अनुष्ठान को तदनुसार करना । [ ३६ ]
SR No.010280
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size3 MB
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