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________________ कर्म-स्थिति-कर्म - पुद्गलो का अवस्थान - समय । कर्ष - समय सोलह मासा । एक तौल | कलल - गर्भ की प्रारम्भिक सात दिनो की दशा ; जमा हुआ शुक्र और रक्त कल्प - १. साधुचर्या की शास्त्रोक्त विधि, २ . देवो के स्थान । कल्प- काल-बीस कोटाकोटि सागर के बराबर का काल । कल्प भूमि - तीर्थं कर की सभा परिषद / समवसरण की भूमि । कल्प वृक्ष - मन- वाछित फलदायक वृक्ष विशेष । करुपातीत - उत्तम जाति के देव विशेष - ग्रैवेयक और अनुत्तर विमानवासी देव | कल्पाकल्प --- समयानुसार करणीय - अकरणीय कार्यों का प्ररूपण या प्ररूपण करने वाला शास्त्र । कल्पोपपन्न - उत्तम जाति में उत्पन्न देव | कल्याणक - तीर्थ कर के जीवन के प्रमुख घटनाक्रम - गर्भ / च्यवन, जन्म, दीक्षा, कैवल्य, मोक्ष । कवक — सीग में उत्पन्न होने वाली जटाकार वनस्पति । कवल -- ग्रास; एक हजार चावलो का एक कौर । कषाय-- क्रोध, मान, माया और लोभ रूपी आत्म- घातक कलुष विकार | [३५]
SR No.010280
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size3 MB
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