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________________ उन्चार प्रसवण समिति-प्रतिष्ठापना गमिति के नाम से मम्योधित ; मल विगर्जन में विवेक । उच्छ्वास-१. अमख्यात आवली के बराबर का काल, २. माम लेना। उञ्छ-अनेक परी से योगा-योटा लिया जाने वाला आहार । उत्तर प्रकृति-कमों के अवान्तर भेद । उत्पाट-द्रव्य की नित्य नई पर्यायों का प्रादुर्भाव । उत्सर्ग-मामान्य रूप से निर्धारित निदोष मार्ग। उत्सर्ग-समिति-देने-उधार प्रसवण ममिति । उत्सपिणी-प्रगतिमूलक कालचक का एक भाग, काल मर्यादा दम कोटाकोटि सागरीपन । उत्सूत्र-मिदान्त के यहिभूत कथन । उत्सेधांगुल-आठ जू के विस्तार का एक क्षेत्र प्रमाण । उदय-कर्म-परिणाम । उदीरणा-नियत ममय न आने पर भी तप आदि के द्वारा होने वाला र्म-क्षय । [ २४ ]
SR No.010280
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size3 MB
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