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________________ अनादेय-निष्प्रभ शरीर का कारण । अनादेय नाम-कर्म-अच्छा कार्य करने पर भी प्रशंसा में बाधक कर्म। अनानुगामिकता-अशुभता की शृखला। अनायतन-मिथ्यादर्शन के आश्रयभूत आधार । अनारम्भ-मन, वचन, काया के हिंसक व्यापार से निवृत्ति । अनार्य-धर्म-मर्यादा रहित जीव । अनाहारक-उपभोग्य शरीर के योग्य पुदगलो को ग्रहण न करनेवाला जीव । विग्रह-गति नाम-कर्म के उदय से होने वाली स्थिति। अनित्य-अनुप्रेक्षा-जगव की क्षण-भंगुरता का पुनः पुनः चिन्तन । अनिन्द्रिय-मन; इन्द्रिय-रहित । अनिन्द्रिय-सिद्ध-मन और इन्द्रिय निरपेक्ष मुक्त-सिद्ध आत्मा । अनिन्द्रिय-प्रत्यक्ष-स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क और अनुमान रूप ज्ञान । अनिवृत्तिकरण-नौवाँ गुणस्थान ; साधक की निर्विकल्प समाधि का नामकरण । अनुकम्पा-प्राणी मात्र के प्रति सौहार्द और मित्र-भाव । [७ ]
SR No.010280
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size3 MB
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