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________________ विद्याधर-क्षत्रियों का एक वंश-विशेष, विद्या-सम्पन्न __ मनुष्य या श्रमण। विद्यासिद्ध-सर्व विद्या-सम्पन्न ; महाविद्या का अधिपति । विनय-शिष्टता ; आचार-सहिता ; मोक्ष-मार्ग । विपर्यय-विपरीत ; पदार्थ में विरोधी तत्त्व/अर्थ का आरोपण ; सीप में चाँदी का निश्चय । विपाक-कर्म-परिणाम । विपाक-विचय-धर्म-ध्यान का एक भेद ; कर्म-फल का चिन्तन । विपुलमति-मन या मतिज्ञान के विषय का ग्राहक , मनः पर्यवज्ञान का एक भेद । विभंगज्ञान-विपरीत अवधि-ज्ञान , मिथ्यात्म मिश्रित अवधि ज्ञान। विभाव-स्वभाव-विपरीत , विचार करना , विवेकपूर्वक ग्रहण करना। विभाव-पर्याय-मनुष्य, नारक और देव रूप में जीवनधारा। [ ११२ ]
SR No.010280
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size3 MB
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