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________________ लेपकर्म-मिट्टी, मोती या अन्य किसी वस्तु के लेप से प्रतिमा पर की जाने वाली सौन्दर्य-रचना, मूर्ति का जीर्णोद्धार । लेश्या-कषाय-अनुरंजित योगो की प्रवृत्ति । लोक-असीम आकाश का मध्यवतीं पुरुषाकार क्षेत्र । लोक-नाभि-मेरु-पर्वत। लोक-नाली-लोक के मध्य में चौदह रज्जु/राजु लम्बी और एक वर्ग राजु मुंहवाली नलिका। लोक-मूढता-लोकिक क्रियाकाण्डो में अभिरुचि । लोकाकाश-पट् द्रव्यों का कार्य क्षेत्र । लोकान-लोकाकाश का शीर्ष भाग । लोकाय चूलिका-सिद्ध-शिला । लोकान्त-लोकशिखर, लोक का अन्तिम भाग। लोकालोक-सम्पूर्ण आकाश-क्षेत्र । लोकप्रवाद-जनश्रुति । लोभ-लालच, तृष्णा । [ १०८ ]
SR No.010280
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size3 MB
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