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________________ भवसिद्धिक मुक्तिगामी , उसी जन्म में या भावी जन्म में मुक्ति प्राप्त करने वाला जीव । भन्य-मुक्ति-योग्य जीव। भव्यसिद्ध-देखें-भवसिद्धिक । भाव-जीव का परिणाम , चित्त-विकार , द्रव्य की पूर्वापर अवस्था । भावकम-द्रव्य-कर्म की शक्ति, उपयोग सहित, रागादि भाव; ___ पारमार्थिक पदार्थ । भावधर्म-जीव का स्वभाव । भावनमस्कार-आप्त पुरुषो/गुरूओ के प्रति अनुराग । भावना-ध्यान के अभ्यास की क्रिया , देखें-अनुप्रेक्षा । भावनिक्षेप-वर्तमान विवक्षित पर्याय से उपलक्षित द्रव्य ; वर्तमान पर्याय युक्त वस्तु को उससे सम्बंधित नाम से ही सबोधित करना, जैसे राज्यनिष्ठ राजा को राजा कहना । भावनिद्रा-ज्ञान, दर्शन और चारित्र के प्रति उत्सुकता का अभाव । भावनिर्जरा- पुद्गलों की कर्म-पर्यायों का विनाश । भावपूजा-परमात्मा के गुणो का स्मरण । भावप्रतिक्रमण-निर्मलता की ओर वापसी, राग-द्वेष के आश्रित दोषो से मुक्ति , आत्म-समीक्षा एवं ध्यान-योग। [ ६६ ]
SR No.010280
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size3 MB
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