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________________ भक्त-कथा-भोजन-प्राप्ति के उद्देश्य से की जाने वाली वार्ता । भक्तपरिज्ञा-आहार का परित्याग । भक्तप्रत्याख्यान-सलेखना-विधि में देह-मुक्ति के लिए धीरे धीरे भोजन त्याग करने की प्रक्रिया ; आहार-त्याग रूप अनशन । भक्ति-देव, गुरु, धर्म, संघ एवं शास्त्र के प्रति होने वाला विशुद्ध अनुराग। भट्टारक-महापण्डित ; बुद्धिजीवी लोगों का मार्गदर्शक ; गच्छ-विस्तारक ; अतिशय सम्माननीय सम्वोधन । भव--संसार ; चतुर्गति-भूमण । भवकेषली जीवन-मुक्त ; अघाती कमों के क्षय हुए विना केवल-शान प्राप्त करने वाले जीव । भवप्रत्यय-अवधि-ज्ञान का एक भेद ; विना पुरुषार्थ जन्म से प्राप्त होने वाला आत्मोत्थ अवधि ज्ञान । [ ६५ ]
SR No.010280
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size3 MB
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