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________________ जैन परम्परा का इतिहास [४७ किया जा रहा है किन्तु किया नही गया है, विछाया जा रहा है किन्तु बिछा नहीं है—का सिद्धान्त सही है । इसके विपरीत भगवान् का क्रियमाण कृत और संस्तीर्यमाण सस्तृत-करना शुरू हुआ, वह कर लिया गया, बिछाना शुरू किया, वह विछा लिया गया-यह सिद्धान्त गलत है । चलमान को चलित, यावत् निर्जीर्यमाण को निर्जीर्ण मानना मिथ्या है । चलमान को अचलित यावत् निर्जीयमाण को अनिर्जीर्ण मानना सही है। बहुरतवाद-कार्य की पूर्णता होने पर उसे पूर्ण कहना ही यथार्य है । इस सैद्धान्तिक उथल-पुथल ने जमाली की शरीर वेदना को निर्वीर्य बना दिया । उसने अपने साधुओ को बुलाया और अपना सारा मानसिक आन्दोलन कह सुनाया । श्रमणो ने आश्चर्य के साथ सुना। जमाली भगवान् के सिद्धान्त को मिथ्या और अपने परिस्थिति-जन्य अपरिपक्व विचार को सत्य बता रहा है । माथे-माथे का विचार अलग-अलग होता है। कुछेक श्रमको को जमाली का विचार रुचा, मन को भाया, उस पर श्रद्धा जमी। वे जमाली की शरण में रहे । कुछ एक जिन्हे जमाली का विचार नही जचा, उस पर श्रद्धा या प्रतीति नही हुई, वे भगवान् की शरण मे चले गए । थोड़ा समय वीता । जमाली स्वस्थ हुआ । श्रावस्ती से चला । एक गांव से दूसरे गांव विहार करने लगा । भगवान् उन दिनो चम्मा के पूर्णभद्र-चैत्य मे विराज रहे थे । जमाली वहाँ आया। भगवान् के पास बैठकर बोला-देवानुप्रिय ! आपके बहुत सारे शिष्य असर्वज्ञ-दशा में गुरुकुल से अलग होते है (छदमस्थापक्रमण करते है ) । वैसे मैं नही हुआ हूँ। मैं सर्वज्ञ ( अर्हत्, निन, केवली ) होकर आप से अलग हुआ हूँ। जमाली को यह बात सुनकर भगवान् के ज्येष्ठ अन्तेवासी गौतम स्वामी बोले-जमाली । सज्ञ का ज्ञान-दर्शन शैल-स्तम्भ और स्तूप से रुद्ध नहीं होता। जमाली ! यदि तुम सर्वज्ञ होकर भगवान् से अलग हुए हो तो लोक शाश्वत है या अशाश्वत ? जीव शाश्वत है या अशाश्वत ? इन दो प्रश्नो का उत्तर दो । गौतम के प्रश्न सुन वह शकित हो गया। उनका यथार्थ उत्तर नही दे सका। मौन हो गया। भगवान् बोले-'जमाली । मेरे अनेक छद्मस्थ शिष्य भी मेरी भांति प्रश्नो का उत्तर देने में समर्थ है। किन्तु तुम्हारी भांति अपने आपको सर्वज्ञ कहने मे समर्य नही है।
SR No.010279
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages183
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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