SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६] जैन परम्परा का इतिहास तर्क के साथ श्रद्धा को संतुलित करते हुए भगवान् ने कहा- गौतम । कई व्यक्ति प्रयाण की वेला मे श्रद्धाशील होते है और अन्त तक श्रद्धाशील ही बने रहते है। कई प्रयाण की वेला में श्रद्धाशील होते है किन्तु पीछे अश्रद्धाशील बन जाते है। कई प्रयाण की बेला में सन्देहशील होते है किन्तु पीछे श्रद्धाशील बन जाते है। जिसकी श्रद्धा असम्यक होती है, उसमे अच्छे या बुरे सभी तत्त्व असम्यक् परिणत होते है। . जिसकी श्रद्धा सम्यक् होती है, उसमें सम्यक् या असम्यक् सभी तत्त्व सम्यक् परिणत होते है२९ । इसलिए गौतम | तू श्रद्धाशील बन । जो श्रद्धाशील है, वही मेधावी है। ___ इन्द्रभूति की घटना सुन दूसरे पडितो का क्रम बध गया। एक-एक कर वे सब आये और भगवान् के शिष्य बन गये। उन सब के एक-एक सन्देह था । भगवान् उनके प्रच्छन्न सन्देह को प्रकाश में लाते गए और वे उसका समाधान पा अपने को समर्पित करते गए। इस प्रकार पहले प्रवचन मे ही भगवान् की शिष्य सम्पदा समृद्ध हो गई। ____ भगवान् ने इन्द्रभूति आदि ग्यारह विद्वान् शिष्यो को गणधर पद पर नियुक्त किया और अब भगवान् का तीर्थ विस्तार पाने लगा। स्त्रियो ने प्रवज्या ली। साध्वी सघ का नेतृत्व चन्दनबाला. को सौपा । आगे चलकर १४ हजार साधु और ३६ हजार साध्वियों हुई । स्त्रियो को साध्वी होने का अधिकार देना भगवान् महावीर का विशिष्ट मनोबल था। इस समय दूसरे धर्म के आचार्य ऐसा करने में हिचकते थे । आचार्य विनोबा भावे ने इस प्रसग का बड़े मार्मिक ढग से स्पर्श किया है उनके शब्दो में-"महावीर के सम्प्रदाय में-स्त्री-पुरुषो का किसी प्रकार कोई भेद नहीं किया गया है। पुरुषो को जितने अधिकार दिए गए है, वे सब अधिकार बहनो को दिए गए थे। मैं इन मामूली अधिकारो की बात नही करता हूँ, जो इन दिनो चलता है और जिनकी चर्चा आजकल बहुत चलती
SR No.010279
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages183
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy