SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन परम्परा का इतिहास विवाह-पद्धति __नाभि अन्तिम कुलकर थे। उनकी पत्नी का नाम था-'महदेवा'। उनके पुत्र का जन्म हुआ। उनका नाम रखा गया 'उसभ' या 'पभ' । इनका शैशव वदलते हुए युग का प्रतीक था। युगल के एक साथ जन्म लेने और मरने की सहज-व्यवस्था भी शिथिल हो गई। उन्ही दिनो एक युगल जन्मा, थोडे समय वाद पुरुप चल वमा । स्त्री अकेली रह गई। इधर ऋपभ युवा हो गए । उनने परम्परा के अतिरिक्त उस कन्या को स्वय व्याहा-यही से विवाह-पद्धति का उदय हुआ । इसके बाद लोग अपनी सहोदरी के सिवा भी दूसरी कन्याओ से विवाह करने लगे। ___ समय ने करवट ली । आवश्यकता-पूति के सावन सुलभ नही रहे। योगलिको मे क्रोध, अभिमान, माया और लोभ बढ़ने लगे। हाकार, माकार और धिक्कारनीतियो का उल्लघन होने लगा । समयं गासक की मांग हुई। कुलकर व्यवस्था कर अन्त हुआ । ऋपभ पहले राजा बने । उन्होने अयोध्या को राजवानी बनाया । गाँवों और नगरो का निर्माण हुआ । लोग अरण्य-वासी से हट भवन-वासी वन गए । ऋषभ की क्रान्तिकारी और जन्मजात प्रतिभा से लोग नए युग के निर्माण को ओर चल पड़े। ऋपभदेव ने उन, भोग, राजन्य और क्षत्रिय-ये चार वर्ग स्थापित किए। आरक्षक वर्ग 'उन' कहलाया। मत्री आदि गामन को चलाने वाले 'भोग', राजा के समस्थिति के लोग राजन्य' और शेप 'क्षत्रिय' कहलाए । खाद्य-समस्या का समाधान कुलकर युग मे लोगों की भोजन-सामग्री थी -कन्द, मूल, पत्र, पुष्य और फल' । वढती हुई जन-सख्या के लिए कन्द आदि पर्याप्त नही रहे और वन-वासी लोग गृह-वासी होने लगे। तब अनाज खाना सीखा। वे पकाना नही जानते थे और न उनके पास पकाने का कोई सावन था। वे कच्चा अनाज खाते थे। समय बदला । कच्चा अनाज दुपाच्य हो गया। लोग ऋपभदेव के पास पहुँचे और अपनी समस्या का उनसे समाधान मांगा। ऋपभदेव ने अनाज को हायों से घिसकर खाने की सलाह दी। लोगो ने वैसा ही किया । कुछ
SR No.010279
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages183
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy