SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चक्रवर्ति मरत। [५३ (२) पवित्र आचार विचारोंको सुरक्षित रखना । (३) पवित्र माचरणों और विचारोंको बढ़ाकर दूसरोंसे अपनेको श्रेष्ठ बनाना। ( ४ ) दुपरे वर्गों द्वारा अपने में पात्रत्व स्थिर रखना । (५) अन्य पुरुषों को शास्त्रानुकूल व्यवस्था तथा प्रायश्चित देना। (६-७) अपना महत्व सुरक्षित रखनेके लिए अपने उच्च आचरणों का विश्वास दिलाकर राजा तथा प्रजा द्वारा अपना बघ ना किए जाने और दंड न पाने का अधिकार स्थापित करना। (८-९) श्रेष्ठ ज्ञान और चरित्रकी उच्चता द्वारा सर्वसाधारणसे आदर प्राप्त करना । (१०) दूसरे पुरुषोंको उच्च चारित्रवान बनाने का प्रयत्न करना। इन नियमों का सदैव पालनेका उन्हें आदेश दिया। ननताके बालकोंको शिक्षण देना, उनके वैवाहिक कार्योको सम्पन्न कराना और अन्य श्रेष्ट क्रियाओं के कानकी व्यवस्था रखने का कार्य उनके लिए सोंग, फिर उन्हें उत्तम भोजन और वस्त्रों का दान दिया। उन्होंने क्षत्रियों को अपने सदाचारकी रक्षा स्वते हुए राज्यनीति और धर्मशास्त्र के अध्ययनका उपदेश दिया और आत्मरक्षण, प्रजापाकन तथा अन्याय दमन करने का विधान चलाया । सम्राट भातने भगवान् ऋषभदेवकी निर्वाण भूमिपर विशाल चैत्यालय भी स्थापित किये। और उनमें योगेश्व' ऋषभकी महान मतिको स्थापित किया ।
SR No.010278
Book TitleJain Yuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy