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________________ (३) चक्रवर्ति भरत । (भारतके आदि चक्रवर्ति-सम्राट्।) (१) मंपारसे विरक्त होने पर ऋषभदेव जीने अयोध्याका राज्यसिंहासन युवराज भरतको समर्पित किया था। भरतजी भारतवर्ष के सबसे पहले प्रतापी सम्रट थे । जिपके पवल प्रतापके मागे मानवों के मस्तक भक्तिसे झुक जाते, ऐसे दिव्य रत्नोंसे चमकनेवाले राज्यमुकुटको उन्होंने माने सिापर रखा था। वे भारतवर्ष के भाग्य विधाता थे । उन्होंने संपूर्ण भारत विजय कर अपने अखंड शासनको स्थापित किया था, अपने नामसे भारतको प्रसिद्ध किया था । राज्य सिंहासनपर बैठते ही उन्होंने अपनी महान सामर्थ्य और पराक्रमसे बड़े २ राजाओंके मस्तकको झुका दिया था।
SR No.010278
Book TitleJain Yuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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