SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५६] जैन युग-निर्माता । सर्वज्ञ घोषित करनेवाला दिगम्बर महावीर तेरा गुरु है ? अच्छा चल, मैं उससे अवश्य ही विवाद करूंगा और तेरे प्रश्नका भी उत्तर दूंगा। ब्राह्मण बेषधारी इन्द्रराज जो कुछ चाहते थे वही हुभा । वे किसी तरह ज्ञानमदसे मदोन्मत्त गौतम ब्राह्मणको भगवान् महावीरके सभास्थल में लेजाना चाहते थे, जिसे गौतमने स्वयं ही स्वीकृत किया। वे प्रसन्न होकर बोले-विद्व न गौतम ! हम आपकी बातसे सहमत हैं, आप शीघ्र ही मेरे गुरुके पास चलिए । महावीरके सभास्थल की महिमा बढ़ने वाला सभ के बीच में एक विशाल मानस्तंभ था जिम पा जैनत्वका प्रदर्शक केशरिया झंडा लहरा रहा है। मानस्तंभके चारों ओर शांति का साम्राज्य स्थापित करनेवाली दिगम्बर मूर्तियां विराजमान थीं। छवषधारी इन्द्रके माथ २ चरते हुए दृसे ही मानम्तमकी देखः । उसे देखते ही उसके हृदय पर विलक्षण प्रभाव पहा, वह महावीर की माता का विचार ने लगाउसके हृदयका मिथ्या कार उस मनातमको देते हैं। कुछ कम हो गया, उसका मन अब २२२ औ शान्त था। सरनाक पव'हमें वह कर उसने बहन महायों के समाचल प्रवर । अनंत दीति सूर्यमुलको पभाको लजि - कनेवरटेको उमने देखा, दाता औणि मानव मूह शांत रम्र सौर मांत हुमा उनका उपदेश म. को 'क हुशाटा है। एक बार पूर्ण दृष्टिसे उन्होंने उनके प्रति... और वार लि मुख मंडलको देखा, उनकी शांत मुद्राका गौतमक हृदय पर गहरा प्रभाव पड़ा,
SR No.010278
Book TitleJain Yuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy