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________________ ( ७२ ) कथन से सर्व प्रकार के पाप कर्म दुःख के लिये प्रतिपादन किये गये हैं. दृष्टान्त में यह सिद्ध कर दिया है कि-जिस प्रकार ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती को पाप कर्म का फल भोगना पड़ा है, उसी प्रकार प्रत्येक प्राणी पाप कर्म के अशुभ फल का अनुभव • करता रहता है। अतएव पाप कर्म सर्वथा त्याज्य है तथा सूत्र में लिखा है कि" हिंसपसुयाणि दुहाणि यत्ता " यावन्मात्र दुःख हैं वे हिंसा से प्रसूत हैं अर्थात् सर्व प्रकार के दुःखों की जननी हिंसा ही है, इस लिये हिंसा का सर्वथा परित्याग करना चाहिए । सो आचार्य आहरण के विधान को पूर्णतया जानने वाला हो। २७ हेतुनिपुण-जिस के द्वारा साध्य का ज्ञान हो जाये उसे हेतु कहते हैं तथा जो साध्य के साथ अन्वय वा व्यतिरेक रूप से रह सके उसी का नाम हेतु है, सो श्राचार्य हेतुवाद में निपुण होना चाहिए। जव हेतु और हेत्वाभास का पूर्णतया वोध होता है, तव ज्ञान के प्रतिपादन में किसी प्रकार से भी शंका का स्थान नहीं रहता। क्योंकि-वितण्डावाद विवाद और धर्मवाद इन तीन प्रकार के वादों में ले धर्मवाद करने की शास्त्रों में विधि देखी जाती है. सो धर्मवाद करते समय हेतु में निपुणता अवश्यमेव होनी चाहिए, जैसे किसी ने कहा कियह पर्वत अग्नि युक्त प्रतीत होता है. तब किसी दूसरे ने पूछा कि-किस हेतु से? तव उस ने उत्तर में कहा कि-धूम के देखने से, इस प्रकार हेतु से पूणतया पदार्थों का वोध हो जाता है । अतः आचार्यवर्य हेतु निपुण अवश्यमेव होने चाहिएं। २८ उपनयनिपुण-जिस अर्थ को दृष्टान्त से दृढ़ किया जाता है उसी को उपनय कहते हैं, इस का अपरनाम दार्टान्तिकभी है। जब किसी अर्थ की व्याख्या मे प्रमाण पूर्वक उपनय की संयोजना की जाती है तव वह व्याख्या सामान्य व्यक्तियों के लिये फलप्रद हो जाती है, क्योंकि उस के द्वारा अनेक भव्य आत्माएं सुमार्ग पर आरूढ़ हो जाती हैं । जिस प्रकार जंवूचरित्र में उपनय के द्वारा परस्पर दृष्टान्तों की रचना की गई है, क्योंकि जंवूकुमार जी अपनी धर्मपत्नियों के वोध के लिये जो दृष्टान्त दे रहे हैं, वे सर्व उपनय के द्वारा ही कथन किए गए हैं। इस प्रकार के कथन से श्रोताओं को ज्ञान का लाभ भली प्रकार से हो सकता है। २६ नयनिपुण-नय सात प्रकार से वर्णन किये गए हैं, जैसे किनैगमनय १ संग्रहनय २ व्यवहारनय ३ ऋजुसूत्र ४ शब्दनय ५ समभिरूढ़नय ६ एवं भूतनय ७ इन के अर्थों में जो निपुणता रखने वाला है उसी का नाम नयनिपुण है। अनंत धर्मात्मक वस्तुओं में से किसी एक विशिष्ट धर्म को लेकर जो पदार्थों की व्याख्या करनी है, उसी को नयवाक्य कहा जाता है जैसे कि-नयकर्णिका में संक्षेप से नयों का स्वरूप निम्न प्रकार से लिखा है:
SR No.010277
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages335
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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