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________________ ( १६ ) रुधिर और मांस गो-दुग्ध के समान श्वेतवर्ण का होता है । यद्यपि रुधिर का वर्णन प्रायः रक्त ही कथन किया गया है, परन्तु उनके अतिशय के माहात्म्य से रुधिर वा मांस श्वेत वर्ण का होजाता है। यदि ऐसे कहा जाय कि यह प्रकति-विरुद्ध नियम किस प्रकार हो सकता है ? इसका समाधान यह किया जाता है कि यह प्रकृति-विरुद्ध नियम नहीं है, किन्तु यह एक पुण्यकर्म का उत्कृष्ट फलादेश है। क्योंकि-पुद्गल पांचवों में परिणत होता रहता है। जैसे जन्त्वागार में शुक वा मयूर श्वेतवर्ण के देखे जाते हैं किन्तु प्रायः मयूर नील वर्ण के ही होते हैं तथा उनकी पिच्छ अनेक प्रकार के वर्गों से चित्रित होती है, और (तोते) प्रायः हरे वर्ण के होते हैं, परन्तु जव मयूर वा शुक श्वेतवर्ण के देखने में आते हैं तव उनमें पूर्वोक्त बातें नहीं पाई जातीं, तो क्या इन जीवों को प्रकृति-विरुद्ध माना जायगा ? नहीं। इसी प्रकार महापुण्योदय से वा प्रकाशमय श्रात्मा होने सेतीर्थकर प्रभु के शरीर का रुधिर और मांस श्वेत प्रभा का धारण करने वाला होता है। क्योंकि-पुद्गल द्रव्य अनन्त पर्याओं का धारण करने वाला होता है। तथा कुछ २ व्यक्तियों में दुग्ध विषय में भी विवाद चलता रहता है। उनका कथन है कि-शरीरज होने से दुग्धभी एक प्रकार का रुधिर ही है, सो यह पक्ष नाड़ियों के पृथक् २ होने से अमान्य है, अतएव सिद्ध हुआ कि श्रीतीर्थकर देव के शरीर का रुधिर और मांस श्वेत वर्णवाला ही होता है। साथ ही इसमें यह भी जानना उचित है कि यह कथन सापेक्ष है, और पुण्य कर्म की एक विलक्षणता दिखलाई गई है। ४ पउमुप्पलगंधिए उस्सासनिस्सासे । जिस प्रकार सुगंधमय द्रव्यों का तथा नीलोत्पल कमल का सुगंध होता है, उसी प्रकार का सुगंध उच्छ्वास और निश्वास द्वारा श्री भगवान् के वायु से श्राता है अर्थात् श्रीभगवान् का उच्छ्वासनीलोत्पल कमलवत् तथा सुगन्ध मय द्रव्यों के समान होता है । इस का कारण यह है कि उनके पुण्योदय से उनके शरीर का वायु प्रायः दुर्गन्धमय नहीं होता । यह उपमालंकार से कथन किया गया है। यदि ऐसे कहा जाय कि-जव उनका शरीर अन्न के आधार पर ठहरा हुआ है, तो फिर उश्वास वा निश्वास उक्त प्रकार से किस प्रकार शुद्ध हो सकता है ? इस के उत्तर में कहा जाता है कि-प्रायः तैजस शरीर के मन्द पड़ जाने से उच्छ्वास और निश्वास में विकृति विशेष हो जाती है। उस से उन का तैजस शरीर मंदता का धारण करने वाला नहीं होता है, तथा समाधिस्थ आत्मा प्रकाशमय हो जाने से उसके अशुभ पुद्गल शुभ भाव के धारण करने चाले हो जाते है।
SR No.010277
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages335
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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