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________________ फिर इस मनुष्य लोक में उत्तम राज्य वंशादि में जन्म धारण करके फिर मुनिवृत्ति धारण कर लेता है । उक्त वृत्ति में महान् तपादि क्रियानुष्ठान कर शानावरणीय दर्शनावरणीय, मोहनीय, और अन्तराय, इन चारों को का क्षय करके केवल ज्ञान की प्राप्ति करलेता है । जिससे वह सर्वज्ञ और सर्वदर्शी वन जाता है । फिर वह अपने पवित्र उपदेशों द्वारा साधु साध्वी श्रावक और श्राविका रूप चारों संघों की स्थापना करता है, जिनके सत्योपदेश द्वारा अनेक भव्यात्माएं अपना कल्याण करने लग जाती है । तीर्थकर प्रभु चतुस्त्रिशत् अतिशय और पंचत्रिंशत् वागतिशयों से युक्त होक इस लोक में अनेक भव्य प्राणियों के हित के लिये धर्मोपदेश देते हुए स्थान २ पर विचरते है। यद्यपि-अर्हन् और तीर्थकर देव का ज्ञान का विषय परस्पर कोई विशेष नहीं होता, परन्तु नाम कर्म अवश्य विशेष होता है । सो तीर्थकर नाम के उदय से जीव अनेक भव्य प्राणियों का कल्याण करते हुए मोक्ष पद की प्राप्ति कर लेते हैं। श्रीसमवायांग सूत्र के चतुरिंशत् स्थान में चतुस्त्रिशदतिशय निम्न प्रकार से वर्णन की गई हैं। तथा च चोत्तीसं वुद्धाइ सेसा पएणत्ता तं जहा बुद्धों ( तीर्थंकरों ) की चौतीस अतिशय प्रतिपादन की गई हैं। जैसे कि १ अवठिए केसमसुरोमनहे तीर्थकर प्रभु के केश-श्मश्रु-दाढ़ी मूंछ के बाल शरीर के रोम और नख, यह सदैव काल अवस्थितावस्था में रहते हैं अर्थात् जिस प्रकार नापित द्वारा केशों का अलंकार कराया हुआ होता है वह भाव उनका . स्वाभाविक ही होता है। क्योंकि-जिस प्रकार भुजा वा जंघा आदि के रोम परिमितावस्था में प्रत्येक व्यक्ति के रहते ( होते हैं) ठीक उसी प्रकार श्री भगवान् के सर्व शरीर के रोम वा केश अवस्थित अवस्था में रहते हैं । यही पुण्य के उपार्जन किये हुए फल का लक्षण है। २ निरामयानिरुवलेवा गायलही शरीर रूपी लता जिन की नीरोग और निर्मल हो जाती है अर्थात् गात्र यष्टि रोग से रहित और निर्मल होती है। क्योंकि-जव शरीर रोग से रहित होता है तव उसकी निर्मलता स्वभाविकता से ही हो जाती है । रोग-युक्त शरीर उपकार करने में प्रायः असमर्थ सा हो जाता है। अतएव नीरोगावस्था में रहना यह भी उस आत्मा का अतिशय है। ३ गोक्खीर पंडुरे मंससोणिए
SR No.010277
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages335
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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