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________________ ( २२८ ) अब शास्त्रकार षट्द्रव्यों के लक्षण विषय कहते हैंलक्खणो उधम्मो अहम्म ठाणलक्खणो । भायणं सव्वदव्वाणं नहं श्रोगाह लक्खणं ॥ उत्तराध्ययन सूत्र अ० २८ गा० ॥ ६ ॥ वृत्ति - धम्मों धर्मास्तिकायो गतिलक्षणो ज्ञेयः, लक्ष्यते ज्ञायतेऽनेनेति लक्षणम् एकस्माद्देशात् जीवपुद्गलयोर्देशान्तरं प्रति गमनं गतिर्गतिरेव लक्षं यस्य स गतिलक्षणः । अधम्म अधर्मास्तिकायः, स्थितिलक्षणो ज्ञेयः स्थितिः स्थानं गतिनिवृत्तिः सैव लक्षणं श्रस्येति स्थानलक्षणो ऽधर्मास्तिकायो ज्ञेयः, स्थितिपरिणतानां जीवपुद्गलानां स्थितिलक्षणकार्ये ज्ञायते स अधर्मास्तिकायः यत्पुनः सर्वद्रव्याणां जीवादीनां भाजनं आधाररूपं नभः श्राकाशं उच्यते तत् च नभः अवगाहलक्षणं श्रवगाढुं प्रवृत्तानां जीवानां पुद्गलानां श्रालम्वो भवति इति अवगाहः अवकाशः स एव लक्षणं यस्य तत् श्रवगाहलक्षणं नभ उच्यते ॥ ६ ॥ भावार्थ- पूर्वी गाथाओं में द्रव्यों के नाम वा उन का परिमाण प्रतिपादन किया गया है, किन्तु इस गाथा में द्रव्यों के लक्षण-विषय प्रतिपादन किया गया है । जैसे कि-धर्मद्रव्य का गति लक्षण है, क्योंकि जिसके द्वारा पदार्थ जाना जाय वा लक्षित किया जाय उसी को लक्षण कहते हैं, सो जब जीव वा पुद्गल द्रव्य गति करने में प्रवृत्त होते हैं तब उस समय धर्मद्रव्य उनकी गति में सहायक बनता है। जिस प्रकार चलने वालों के लिये राजमार्ग सहायक होता है तथा मत्स्य की गति में जल सहायक होता है ठीक उसी प्रकार जीव और पुद्गल की गति में धर्मद्रव्य सहायक बनजाता है परन्तु धर्मद्रव्य स्वयं उक्त द्रव्यों की गति में प्रेरक नहीं माना जाता जैसे किजल वा राजमार्ग जीव और पुद्गल की गति में प्रेरक नहीं है परन्तु सहायक है ठीक उसी प्रकार धर्मद्रव्य गति में प्रवृत्त हुए जीव और पुद्गल की सहायता में उपस्थित हो जाता है । अतएव धर्मद्रव्य का गति लक्षण प्रतिपादन किया है । सो जिस प्रकार धर्मद्रव्य गति में सहायक माना गया है ठीक उसी प्रकार जब जीवद्रव्य और जीवद्रव्य स्थिति में (ठहरने में) उपस्थिति करते है, तब अधर्मद्रव्य उन की स्थिति में सहायक बनता है, इसी वास्ते श्रधर्मद्रव्य का स्थिति लक्षण प्रतिपादन किया गया है । जिस प्रकार ग्रीष्म ऋतु से पीडित पथिक गमन क्रिया के समय एक छाया से सुशोभित वृक्ष का सहारा मानता है अर्थात् छाया-युक्त वृक्ष के नीचे बैठ जाता है उस समय माना जाता है कि -गति क्रिया के निरोध में वृक्ष स्थिति में सहायक बन गया, ठीक उसी प्रकार जीव और पुद्गल की स्थिति मैं अधर्मद्रव्य असाधारण कारण माना जाता है ।
SR No.010277
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages335
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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