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________________ ७२ जैन-संस्कृति का राजमार्म जाता है, लेकिन वह दोष जैन-कथानकों मे नही है। दूसरे, इन कथानकों मे स्वाभाविक रूप से मर्यादा का भी निर्वाह किया गया है । इस सम्बन्ध में एक उदाहरण दूं कि तुलसीकृत रामायण मे सीताहरण के समय राम को स्वर्ण-मृग मे लुब्ध बन कर भागने का उल्लेख है, जो वास्तव मे राम की मर्यादा को भग करने जैसी वस्तुस्थिति है। राम जैसा महापुरुप स्वर्ण-मग की सुन्दरता मे लुब्ध बन कर या अपनी पत्नी के कथन से वास्तविकता को भूलकर एक निर्दोष प्राणी को मारने दोडे, यह वर्णन स्वाभाविक नही कहा जा सकता। जैन रामायण मे सीताहरण के उल्लेत मे यह वर्णन है कि उस समय लक्ष्मण खरदूपण राक्षसो से युद्ध करने गये हुए थे और वहां एक राक्षस ने लक्ष्मण की आवाज़ मे जोरो से 'राम-राम' पुकारा तो उस करुण ध्वनि को सुनकर सीता ने राम को जाने के लिए आग्रह किया कि अवश्य ही लक्ष्मण पर कोई विपत्ति आ गई है। यह वर्णन महापुरुषो की अहिंसा व उच्चवृत्ति के अनुकूल पूर्णतया स्वाभाविक कहलायगा। निर्दोष पशुप्रो की महापुरुष द्वारा शिकार करने के तथ्य को प्रचारित कर क्या गाज भी प्राणी अहित का उत्तेजना नही मिलती? कई बार राजपूतो के सामने मैं शिकार का त्याग करने की बात कहता हूँ तो वे कह उठते है कि महाराज, शिकार तो क्षत्रियो का धर्म है, राम ने भी तो किया था। आप सोचते होगे कि मैं एक ऐतिहासिक कथा को असत्य सिद्ध करने की कोशिश कर रहा हूँ, पर धर्म कथा साहित्य ही वह है, जिससे सत्य व सर्व-कल्याण का ही बोध हो । राजा दशरथ के पुत्र हुए, सीताहरण हुआ, वे न्यायी व मर्यादापुरुषोत्तम थे, यह सब ठीक, किन्तु मैं आपको बताता हूँ कि मान्यता मे विभेद कहां और कैसे पडता है ? राम सीता की एक-सी ही मूर्तियो को गुजरात, दक्षिण, राजस्थान व बगाल मे अपने-अपने प्रचलित वेश के अनुमार ही अलग-अलग पोशाकें पहनाई जाती है, किन्तु वे असल पोशाकें तो नही क्योकि असल का ज्ञान तो उस समय की देशकाल की परिस्थिति के अनुमार ही होगा। वाकी लोगो ने अपनी कल्पना के मुताविक पोशाको की रचना ल , उसी प्रकार शिकार या ऐसे मर्यादा निर्वाह के अन्य विषयो के सम्बन्य
SR No.010275
Book TitleJain Sanskruti ka Rajmarg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshlal Acharya, Shantichand Mehta
PublisherGanesh Smruti Granthmala Bikaner
Publication Year1964
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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