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________________ द्वारा ही होती है। इस अतीन्द्रिय धारणा के स्वानुभव के लिए हमे ज्ञान, विद्या और विज्ञान पक सीमा के बाद आगे नहीं ले जा सकते हैं । धर्म भावना ही हमें इस क्षेत्र में प्रवेश देती है और यही कारण है कि ससार की अतुल्य ऋद्धि-सिद्धियो के रहते हुए भी धार्मिक महापुरुषो का प्रभाव सदियो तक मनुष्य के समूहो मे घर किये रहता है। आचार्य श्री गणेशलाल जी म० के प्रवचनो मे उक्त धर्म भावना का व्यवहारिक प्रतिपादन किया गया है और जैन सस्कृति के सच्चे स्वरूप को सरलता से चित्रित किया है। साथ ही एक प्राकर्षण यह है कि इनमें विद्वत्ता का अभिमान कहीं नहीं है । सिर्फ जीवन के अपने अनुभवो का कथन है। जैन दर्शन के आधारो को अपने प्रवचन के प्रत्येक शब्द मे प्रतिफलित करने का प्रयास किया है। __ आचार्य श्री गणेशलाल जी महाराज का व्यक्तित्व एक सत्यान्वेषक का व्यक्तित्व है । जैन दर्शन का उनका ज्ञान और उपदेश सासारिको के पथ प्रदर्शन के उपयुक्त है एवं प्राचार प्रादर्श जीवन के सत्य को प्रगट करता है। यही कारण है इस भौतिकवाद के वातावरण में आज भी हम प्राप श्री जैसे प्राचार्य के दर्शन कर सकते हैं। -जनार्दनराय नागर उपकुलपति राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर
SR No.010275
Book TitleJain Sanskruti ka Rajmarg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshlal Acharya, Shantichand Mehta
PublisherGanesh Smruti Granthmala Bikaner
Publication Year1964
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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