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________________ संयोग है कि सन १९३२ में लिखित प्रथम गीत "दशलक्षण धर्म" था जो जैनमित्र में उस समय छपा और वही गीत आज 'दशलक्षण पूजन' का आधार बन गया। सन १९३४ में प्रकाशित गीत भी "महावीर जयन्ती" पूजन की जयमाला बन गया है। आपने पंचसहस्त्रनाम, संपूर्ण चतुविशंति जिनस्तोत्र, पंच परमेष्ठी विधान, पंच कल्याणक विधान एवं दशभक्ति आदि भी लिखे हैं। आपकी रचनाओं की प्रशंसा आचार्य श्री समन्तभद्र जी कुम्भोज बाहुवलि एलाचार्य मुनि श्री विद्यानन्द जी, मुनि श्री शान्ति सागर जी, मुनि श्री निर्वाण सागर जी, श्री जिनेन्द्र वर्णी (स्व० मुनि श्री सिद्धान्त सागर जी), सुप्रसिद्ध विद्वान स्व० श्री ए. एन. उपाध्ये, पं० श्री फूलचन्द जी सिद्धान्त शास्त्री, पं० श्री कैलाश चन्द्र जी शास्त्री, पं० श्री जगन्मोहन लाल जी शास्त्री, पं० श्री बाबू भाई मेहता पं० श्री दरवारी लाल जी कोठिया, ब्र. केशरीचन्द जो धवल, पं० पन्नालालजी महित्याचार्य, पं० प्रकाश हितैषी आदि विद्वानों ने की है। आपका लेखन निःस्वार्थ भाव से जिनवाणी के प्रचार प्रसार हेतु सतत् प्रवाहित हो रहा है। हमें आशा है इन पूजनों का विशेष प्रचार होगा। विशिष्ट सभी धार्मिक पर्वो पर लिखी गई पूजनों को उन-उन पर्वो पर करने से पर्वो के महत्व का ज्ञान होगा। ___ भोपाल दिगम्बर जैन समाज एवं मुमुक्ष मंडल के भाइयों ने इसके प्रकाशन और मूल्य कम करने में जो सहयोग दिया है वह प्रशंसनीय है। इस पुस्तक की लागत ५)५० रु. से भी अधिक आई है किन्तु प्रचार-प्रसार की दृष्टि से ४)५० रु. न्योछावर रखी गई है। दिवाकर प्रिन्टर्स के श्री बी० एल० दिवाकर एवं श्री राकेश दिवाकर ने इसे तत्परता से सुन्दर छापा है, अत: धन्यवाद । 'पूजांजलि' के छापने में सावधानी बरती है। फिर भी यदि भूलें रह गई हों तो सुधारने की कृपा करें। दो वर्ष पूर्व पू. श्री जिनेन्द्र वर्णी जी के भोपाल चतुर्मास के अवसर पर उन्होंने इन पूजनों को देखकर हार्दिक प्रसन्नता प्रगट की थी तथा भूमिका के रूप में 'मंगल कामना' में अपने विचार प्रगट किये हैं जिसके लिये हम उनके आभारी है। पूजांजलि के प्रत्येक पृष्ठ पर पवैया जी द्वारा रचित लगभग २०० काव्य सूक्तियां एक एक करके दी गई हैं जो अपने आप में अनुपम हैं तथा प्रत्येक पूजा के अन्त में जाप्य मन्त्र भी दिया है। हमारी आकांक्षा है कि आपकी सभी आध्यात्मिक रचनाओं का प्रकाशन शीघ्र ही हो जाय । इत्यलम् ! पंडित राजमल जैन बी. काम. १०, ललवानी गली, भोपाल म. प्र. ज्योतिपर्व, वीर सं० २५१० राजमल जैन बी. काम.
SR No.010274
Book TitleJain Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya Kavivar
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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