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________________ प्राक्कथन भोपाल के प्रसिद्ध साहित्यकार, सामाजिक, राजनैतिक एवं धार्मिक सेवाभावी कार्यकर्ता कविवर श्री राजमल जी पवैया द्वारा रचित ४४ आध्यात्मिक पूजनों का संग्रह "जैन पूजाजलि" का द्वितीय संस्करण प्रस्तुत करते हुए हमें हर्ष है। पूजांजलि का प्रथम संस्करण ३८ पूजनों का श्री हेमचन्द्र जी (जैन इंजीनियरिंग कं०) के सद प्रयत्न से दि० जैन स्वाध्याय मंडल सहारनपुर (उ. प्र.) से गत वर्ष ४००० छपा था जिसका अल्पावधि में ही विक्रय हो गया। पवैया जी सन १९३२ से ही लिखते आ रहे हैं। गीत, कहानी, व्यंग, कविता, लेख सभी विषयों पर आपने लिखा है। चीन - भारत युद्ध के समय सन १९६२ में वीर-रस पूर्ण १५४ कविताओं का संग्रह 'जीवन दान” छपा जिसकी देश के महान नेताओं पं० जवाहरलाल नेहरू श्रीमती इन्दिरा गांधी, मुरारजी देसाई डॉ. जाकिर हुसेन, श्री लाल बहादुर शास्त्री, यशवन्तराव चह्वाण, बाबू तखतमल जैन, मोहनलाल सुखाड़िया, डॉ० ह० वि० पाटसकर, विख्यात ज्योतषी पं० सूर्यनारायण व्यास, डॉ. शंकरदयाल शर्मा आदि ने एवं दैनिक नव भारत टाइम्स, दैनिक हिन्दुस्तान आदि अनेकों समाचार पत्रों ने बड़ी प्रशंसा की। आध्यात्मिक पुरुष पूज्य श्री कानजी स्वामी के निकट संपर्क में भाने के बाद रुचि बदली और आप आध्यात्मिक गीत लिखने लगे। प्रथम आध्यात्मिक रचना "कब मुझे समकित मिलेगा" सन्मति संदेश में छपी। सन् १९६३ में महात्मा गांधी के आध्यात्मिक गुरु श्रीमद् राजचन्द्र जी के गुजराती काव्य - "अपूर्व अवसर" का हिन्दी पद्यानुवाद किया, जो पूज्य श्रीकानजी. स्वामी को इतना भाया कि पंचकल्याणक प्रतिष्ठाओं में तप कल्याणक के अवसर पर वे इसका ही पाठ करके प्रवचन करते थे। सन् १९६४ में आपकी प्रथम पूजन "पंच परमेष्ठी" छपी जिसे भारतीय ज्ञानपीठ ने अपनी ज्ञानपीठ पूजांजलि में स्थान दिया। तब से अब तक यह पूजन अनेक संग्रहों में एक लाख से अधिक छप चुकी है। इसी प्रकार बाहुबलि पूजन भी पचास हजार से अधिक छप चुकी है। वैसे तो पवैया जी की २०-२५ छोटी-मोटी पुस्तकें छप चुकी हैं। सन १९३४-३५ में "जगदुद्धारक भगवान महावीर" "जैन धर्म वीरों का धर्म है" "जैन धर्म-सार्वधर्म" आदि छपी हैं जिनकी प्रशंसा उस समय जैन धर्म भूषण ब्र० शीतलप्रसाद जी एवं विद्यावारिधि बैरिस्टर चंपतराय जी आदि विद्वानों ने की थी। अभी तक आपने सभी तीर्थंकरों, तीर्थ क्षेत्रों तथा नैमित्तिक एवं विशेष पों आदि की १०८ पूजन और १५०० से अधिक आध्यात्मिक गीत लिखे हैं । समय-समय पर पत्र-पत्रिकाओं में आपके गीत छपते रहते हैं। ५ पूजनो का विमोचन तो पूज्य श्री कानजी स्वामी के करकमलों द्वारा हुआ था। यह विचित्र
SR No.010274
Book TitleJain Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya Kavivar
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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