SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६४] जैन पूजांजलि पण्य धूल के लिए बावरे हीरा जनम गंवाता। रत्नराख के लिए जलाता फिर भवभव पछताता ।। कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी को कौशाम्बी में जन्म लिया। गिरि सुमेरु पर इन्द्रादिक ने क्षीरोदधि से नव्हन किया । राजा धरणराज आंगन में सुर सुरपति ने नृत्य किया। जय जय पद्मनाथ तीर्थङ्कर जग ने जय जय नाद किया । ॐ ह्रीं कार्तिक कृष्णात्रयोदश्याम् तपो मंगल प्राप्ताये श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्राय अर्घम् नि० स्वाहा । कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को तुमको जाति स्मरण हुमा । जागा उर वैराग्य तभी लौकान्तिक सुर आगमन हुआ । तरु प्रियंगु मनहर वन में दीक्षा धारी तप ग्रहण हुमा । जय जय पद्मनाथ तीर्थङ्कर अनुपम तप कल्याण हुमा ॥ ॐ ह्री कार्तिक कृष्णात्रयोदश्याम् तपो मंगल प्राप्ताये श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्राय अर्घम् नि० स्वाहा । चैत्र शुक्ल पूर्णिमा मनोहर कर्म घाति अवसान किया। कौशाम्बी वन शुक्ल ध्यान धर निर्मल केवल ज्ञान लिया। समवशरण में द्वादश सभा जुड़ो अनुपम उपदेश दिया। जय जय पद्मनाथ तीर्थङ्कर जग को शिव संदेश दिया। ॐ ह्रीं चैत्र शुक्ल पूर्णिमायां ज्ञान मंगल प्राप्ताये श्री पद्मप्रभ जिने न्द्राय अर्घम् नि० स्वाहा। मोहन कूट शिखर सम्मेदाचल से योग विनाश किया। फागुन कृष्ण चतुर्थों को प्रभु भव बंधन का नाश किया ॥ अप्टकर्म हर ऊर्ध्व गमन कर सिद्ध लोक आवास लिया। जयति पद्म प्रभु जिन तीयश्वर शाश्वत आत्म विकास किया। . ॐ ह्रीं फाल्गुन कृष्ण चतुर्थ्या मोक्ष मंगल प्राप्ताये श्री पदमप्रभ ___जिनेन्द्राय अर्घ्यम् नि० स्वाहा ।
SR No.010274
Book TitleJain Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya Kavivar
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy