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________________ ३०] जैन पूजांजलि जो निवृत्ति की परम भक्ति में रहता है तल्लीन सदा। सिद्ध वधू के दिव्य मुकुट पर होता है आसीन सदा ।। -~जल की उज्ज्वल निर्मलता से मिथ्या मैल न धो सका। माकुलता मय जन्म मरण से रहित न अब तक हो सका । निर्विकल्प अविकल सुखदायक सोलह कारण भावना । जय जय तीर्थङ्कर पद दायक सोलह कारण भावना ॥ ___ॐ ह्रीं दर्शन विशुद्धियादि षोडश कारणेभ्यो जन्म मृत्यु विनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा। भाव मरण प्रति समय किया है मैंने काल अनादि से। भव सन्ताप बढ़ाया चलकर उल्टी चाल अनादि से निर्विकल्प.. ॐ ह्रीं दर्शन विशुद्धियादि षोडश कारणेभ्यो संसारताप विनाशनाय चन्दनम् निर्वपामीति स्वाहा । मुक्त नहीं हो पाया अब तक पर भावों के जाल से । यह संसार चक्र मिट जाये धर्म चक्र की चाल से ॥ निर्विकल्प... ___ॐ ह्रीं दर्शन विगुद्धियादि पोडश कारणेभ्यो अक्षय पद प्राप्तये अक्षतम् निर्वपामीति स्व हा। काम वेदना भव पीड़ा मय पर परणति दुखदायिनी । काम विनाशक निज चेतन पद निज परणति सुखदायिनी॥निवि० ॐ ह्रीं दर्शन विशुद्धियादि पोडश कारणेभ्यो कामवाण विध्वंसनाय पुष्पम निर्वपामीति स्वाहा । जग तृष्णा को व्याधि हजारों प्राकुल करती हैं मुझे। क्षुधा रोग को माया नागिन भव भव डसती है मुझे ॥ निविल्प० ___ॐ ह्रीं दर्शन विशुद्धियादि षोडश कारणेभ्यो क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा । प्रात्म ज्ञान रवि ज्योति प्रकाशित हो अब स्वपर प्रकाशिनी। शुद्ध परम पद प्राप्ति भावना तम नाशक भव नाशिनी ॥निवि० ॐ ह्रीं दर्शन विशुद्धियादि षोडश कारणेभ्यो मोहान्धकार विनाशनाय दीपम् निर्वपामीति स्वाहा।
SR No.010274
Book TitleJain Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya Kavivar
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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