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________________ जन पूजांजलि [१९ आत्म स्वरूपवलंबन भावों, से विभाव परिहार करो। रत्नत्रय का वैभय पाकर, भव दुख सागर पार करो ॥ यह क्षुधा ज्वाल विकराल, हे प्रभु शान्त करू । चरु चरण चढ़ाऊं देव, मिथ्या भ्रान्ति हरू ॥ शाश्वत जिनवर... ॐ ह्रीं श्री सीमन्धर जिनेन्द्राय क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यम् नि । मद मोह कुटिल विषरूप, छाया अंधियारा । दो सम्यक् ज्ञान प्रकाश, फैले उजियारा ॥ शाश्वत जिनवर... ॐ ह्रीं श्री सीमन्धर जिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपम् नि । कर्मों की शक्ति विनष्ट, अब प्रभुवर करदो । मैं धूप चढ़ाऊँ नाथ, भव बाधा हरदो ॥ शाश्वत जिनवर भगवन्त, सीमन्धर स्वामी । सर्वज्ञ देव अरिहन्त, प्रभु अन्तरयामी ॥ ॐ ह्रीं श्री सीमन्धर जिनेन्द्राय अष्टकर्म विनाशनाय धूपम् नि०स्वाहा। फल चरण चढ़ाऊँ नाथ, फल निर्वाण मिले । अन्तर में केवल ज्ञान, सूर्य महान खिले॥ शाश्वत जिनवर... ॐ ह्रीं श्री सीमन्धर जिनेन्द्राय मोक्ष फल प्राप्तये फलम् नि० स्वाहा । जब तक अनर्घ पद प्राप्त, हो न मुझे सत्वर । मैं अर्घ चढ़ाऊँ नित्य, चरणों में प्रभुवर ॥ शाश्वत जिनवर... ॐ ह्रीं श्री सीमन्धर जिनेन्द्राय अनर्घ पद प्राप्तये अर्घम् नि० स्वाहा । गर्भ जम्बूदीप सुमेरु सुदर्शन पूर्व दिशा में क्षेत्र विदेह । देश पुष्कलावती राजधानी है पुण्डरीकिणी गेह । रानी सत्यवती माता के उर में स्वर्ग त्याग पाये। सोलह स्वप्न लखे माता ने रत्न सुरों ने वर्षाये ।। ॐ ह्रीं गर्भ मङ्गल प्राप्ताय श्री सीमन्धर जिनेन्द्राय अर्घम् नि० स्वाहा।
SR No.010274
Book TitleJain Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya Kavivar
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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