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________________ १८] जैन पूजांजलि सिद्ध समान परम पद अपना, यह निश्चय कब लाओगे। द्रव्यदृष्टि बन निज स्वरूप को, कव तक अरे मजाओगे ॥ श्री सीमन्धर जिन पूजन जय जयति जय श्रेयांस नृपसुत सत्य देवी नन्दनम् । चऊ घाति कर्म विनष्ट कर्ता ज्ञान सूर्य निरञ्जनम् ॥ जय जय विदेही नाथ जय जय धन्य प्रभु सीमन्धरम् । सर्वज्ञ केवल ज्ञान धारी जयति जिन तीर्थङ्करम् ॥ ॐ ह्रीं श्री सीमन्धर जिन अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री सीमन्धर जिन अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । ॐ ह्री श्री सीमन्धर जिन अत्र मम् सन्निहितो भव भव वषट् । यह जन्म मरण का रोग, हे प्रभु नाश करूं। दो समरस निर्मल नीर, प्रात्म प्रकाश करू ॥ शाश्वत जिनवर भगवन्त, सीमन्धर स्वामी । सर्वज्ञ देव अरहन्त, प्रभु अन्तरयामी ॥ ॐ ह्रीं श्री सीमन्धर जिनेन्द्राय जन्म जरा मृत्यू विनाशनाय जल निर्वपामीति स्वाहा । चन्दन हरता तनताप, तुम भवताप हरो । निज सम शीतल हे नाथ, मुझको आप करो। शाश्वत जिनवर भगवन्त, सीमन्धर स्वामी ॥ सर्वज्ञ देव अरहन्त, प्रभु अन्तरयामी ॥ ॐ ह्रीं श्री सीमन्धर जिनेन्द्राय संसारताप बिनाशनाय चन्दनम् नि० । इस भव समुद्र से नाथ, मुझको पार करो । अक्षय पद दे जिनराज, अब उद्धार करो ॥ शाश्वत जिनवर... ॐ ह्री श्री सीमन्धर जिनेन्द्राय अक्षय पद प्राप्तये अक्षतम् नि० स्वाहा। कन्दर्प दर्प हो चूर, शील स्वभाव जगे । भवसागर के उस पार, मेरी नाव लगे ॥ शाश्वत जिनवर. .. ॐ ह्रीं श्री सीमन्धर जिनेन्द्रीय कामवाण विध्वंसनाय पुष्पम् नि० ।
SR No.010274
Book TitleJain Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya Kavivar
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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