SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १. - - - ----- - -- - जैन पूजांजलि [१५ जिनदेव की पूजा के भावो से पुण्य बन्ध होता है। सोमंधर, युगमंधर, आदिक, अजित वीर्य को नित ध्याऊ । विद्यमान बीसों तीर्थङ्कर की पूजन कर हर्षाऊं ॥ ॐ ह्रीं श्री विद्यमान बीस तीर्थङ्कराय क्षुघा रोग विनाशनाय नैवेद्यम् । जग मग अन्तर दीप प्रज्ज्वलित लेकर चरणों में पाऊँ । मोह तिमिर अज्ञान हटाने श्री जिनवर के गुण गाऊँ ॥ सीमंधर, युगमंधर, प्रादिक अजित वीर्य को नित ध्याऊँ । विद्यमान बोसों तीर्थङ्कर की पूजन कर हर्षांऊँ । ॐ ह्रीं श्री विद्यमान बीस तीर्थङ्कराय मोहांधकार विनाशनाय दीपम् नि. कर्म प्रकृतियों का ईधन प्रब लेकर चरणों में आऊं । ध्यान अग्नि में इसे जलाने श्री जिनवर के गुण गाऊं ॥ सोमंधर, युगमंधर, प्रादिक अजित वीर्य को नित ध्याऊँ । विद्यमान बीसों तीर्थकर की पूजन कर हर्षाऊं ॥ ॐ ह्रीं श्री विद्यमान बीस तीर्थङ्कराय अष्टकर्म दहनाय घपम नि० । निर्मल सरस विशव भाव फल लेकर चरणों में पाऊं ॥ परम मोक्ष फल शिव सुख पाने श्री जिनवर के गुण गाऊँ ॥ सोमंधर, युगमंधर, आदिक अजित वीर्य को नित ध्याऊँ । विद्यमान बीसों तीर्थकंर की पूजन कर हर्षाऊँ ॥ ॐ ह्रीं श्री विद्यमान बीस तीर्थङ्कराय मोक्ष फल प्राप्तये फलम् नि० । अर्घ पुञ्ज वैराग्य भाव का लेकर चरणों में आऊ । निज अनर्घ पदवी पाने को श्री जिनवर के गुण गाऊं ॥ सोमंधर, युगमंधर, आदिक अजित वीर्य को नित ध्याऊँ । विद्यमान बोसों तीर्थकर को पूजन कर हर्षाऊ ॥ ॐ ह्रीं श्री विद्यमान बीस तीर्थङ्कराय अनर्घ पद प्राप्तये अर्घम् नि० । (जयमाला) मध्यलोक में असंख्यात सागर अरु असंख्यात हैं द्वीप । जम्बू द्वीप धातको खण्ड अरु पुष्करा यह ढाई द्वीप ॥
SR No.010274
Book TitleJain Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya Kavivar
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy