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________________ १२४] जैन पूजांजलि वाह्यांतर में मुनि मुद्रा होगी निर्ग्रथ दिगंबर | चरणों में झुक जाएगा सादर विनीत भू अंबर ॥ जिनवाणी का सार है भेद-ज्ञान जो अन्तर में धारते हो जाते इत्याशीर्वादः ॐ ह्रीं श्री जिन मुखोद्भूत श्रुत ज्ञानाय नमः । जाप्य -:: श्री समयसार पूजन सुखकार । भवपार ॥ जय जय जय ग्रन्थाधिराज श्री समयसार जिन श्रुत नन्दन । कुन्दकुन्द प्राचार्य रचित परमागम को सादर वन्दन ॥ द्वादशांग जिनवाणी का है इसमें सार परम पावन । आत्म तत्व की सहजप्राप्ति का है अपूर्व अनुपम साधन ॥ सीमंधर प्रभु की दिव्य ध्वनि इसमें गूञ्ज रही प्रतिक्षण । इसको हृदयंगम करते ही हो जाता संम्यक् दर्शन ॥ समयसार का सार प्राप्त कर सफल करू मानव जीवन । सब सिद्धों को वन्दन करके करता विनय सहित पूजन ।। ॐ ह्रीं श्री परमागम समयसाराय पुष्पाञ्जलि क्षिपामि । निज स्वरूप को भूल आज तक चारों गति में किया भ्रमण । जन्म मरण क्षय करने को अब निज स्वरूप में करूँ रमण ॥ समयसार का करू अध्ययन समयसार का करू मनन । काररण समयसार को ध्याऊ समयसार को करू नमन ॥ ॐ ह्रीं श्री परमागम समयसाराय जन्म जरा मृन्यु विनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा । भव ज्वाला में प्रतिपल जल जल करता रहा करुण क्रन्दन । निज स्वभाव ध्रुव का आश्रय ले काहूंगा जग के बन्धन || समय ० ॐ ह्रीं श्री परमागम समयसाराय संसारताप विनाशनाय चन्दनं नि० ।
SR No.010274
Book TitleJain Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya Kavivar
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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