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________________ ૨૪ जैन पदार्थ-विज्ञान में पुद्गल यानी जीव के द्वारा पुद्गल में जो क्रिया होती है उसे प्रायोगिक कहते है। (ख) स्वस्प-अपेक्षा से--(१) गति (एक क्षेत्रस्थित गति और देशान्तर प्राप्ति क्षेत्रात्क्षेत्रान्तर-ति) और (२)वन्ध भेद । ____ 'भगवतीसूत्र' में एक क्षेत्रस्थित गति (क्रिया) के लिए 'एअई' (सस्कृत 'एजने', अर्थ कम्पन) शब्द का प्रयोग हुआ है। इस किया के दो भेद है-ममिति और विविध । देशान्तर प्राप्ति गति के कुछ भेद इस प्रकार है (१)अनुश्रेणी नया विवेणी, अविग्रहा तथा विग्रहा और ऋजु तथा कुटिला; (२) प्रतिघाती तथा अप्रतिघाती, (३)म्पृष्ट तथा अस्पृष्ट, और (४) ऊर्ध्व-अव -तिर्यम्। क्रिया के (ससारी जीव की क्रिया के रूप में कुछ भेद 'भगवती' सूत्र में इस प्रकार कहे गये है -(१) समिन एअइ (समित कम्पन), (२) वेअई (विविध कम्पन), (३) चलइ (चलना-गमन), (४) फन्दड (स्पन्दन),५ घट्टइ (मघटन), (६) क्षुव्यई (प्रवलतापूर्वक प्रवेश करना) और (७) उदीरड (प्रवलतापूर्वक प्रेरण-पदार्थान्तर प्रतिपादन)। क्रिया अनेक प्रकार की है। अभयदेव मूरि ने 'भगवती नूत्र के शतक दूसरे उद्देश्य तीसरे (जीव की क्रियानो के वर्णन) की टीका में अन्यान्य क्रियाओ का भेद सग्रह करने को कहा है। गति क्रिया के कुछ नियम इन प्रकार है - (१) अनुश्रेणि गति ,
SR No.010273
Book TitleJain Padarth Vigyan me Pudgal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1960
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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