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________________ १७ दूमरा अध्याय पुद्गल के लक्षणो का विश्लेषण एक, कोई टो, या कोई तीन या चागे नहीं पाये जा सकतेहै । मव पुद्गलो में-चाहे परमाणु, चाहे स्कन्द हो-वर्ण, रस, गन्ध तथा स्पर्श ये चागे ही अवश्य होने है। पुद्गल की नर्व अवस्थानी में ये चारो ही पाये जाते है चाहे व्यक्त हो या अव्यक्त। मस्थान भी वर्ण, रम, गन्ध, स्पर्ग के सिवाय-मृर्तत्व का एक लक्षण हैं। मस्थान का अर्थ आकृति या प्रकार है। सम्यान को पुद्गल का गलन-मिलनकारी म्वभावजन्य कहा जा सकता है। धर्ण के पाँच भेद काला, नीला, लाल, पीला और मादा । रम के पांच भेद तीखा, कडवा, कपाय, बट्टा श्रीर मीग। गन्ध के दो भेद सुगन्ध और दुर्गन्य। म्पर्श के आठ भेद कठिन, मृदु, गुरु, नघु, गीत, उष्ण, स्निग्य और रूक्ष। मम्थान के पांच भेद परिमण्डल, वृत, अयन, चतुग्न और प्रायत। १-रूपादिसस्यानपरिणामो मूत्ति । तत्त्वार्य राजावातिकम् ५५१ की व्याख्या में। २-तत्रस्पर्शोऽष्टविध कठिनो मृदुर्गुरुलंघ शीतउष्ण स्निग्धोरुक्ष इति। रस पचविध-तिक्त कटु फपायोऽम्लोमपुर इति । गन्धो द्विविध -सुरभिरसुरभिश्च । वर्ण पचविध-कृष्णोनीलो लोहित पीत शुक्ल इति । -तत्वार्यसूत्र ५ • २३ का भाष्य । ३-अयाजीवपरिगृहीत वृत्त-व्यस-चतुरसायतपरिमण्डल भेदात् -तत्त्वार्थसूत्र ५ २४ भाष्य टीका ।
SR No.010273
Book TitleJain Padarth Vigyan me Pudgal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1960
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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