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________________ जैन पदार्थ-विज्ञान में पुद्गल जो रूपी है वही मूर्त है। वर्ण, रस, गन्ध, स्पर्श के विशिष्ठ परिणामो से मूर्तित्व होता है। जो रूपी है वही पुद्गल द्रव्य है। कोई भी पुद्गल अरूपी अर्थात् वर्ण, रम, गन्ध, स्पर्श रहित नही हो सकता है। रूपत्व कभी पुद्गल से अलग या भिन्न नही होता है। जिसमें रूपत्व नही, वह पुद्गल नहीं है। वर्ण, रस, गन्ध तथा स्पर्श के समवाय को रूपत्व कहते है। इन चारो की ममप्टि को पुद्गल का स्पत्वगुण कहते हैं। केवल वर्ण या तथा मस्थान को रूपत्व या मूर्तत्व नही कहते । जहाँ रुप (वर्ण) है वहाँ स्पर्श, रस तथा गन्ध जरूर है। ऐसा कोई पुद्गल नही है जिसमे इन चारो मे से केवल कोई तीन, कोई दो, या कोई एक ही हो । अन्य द्रव्यो मे इनमे से कोई १-रूपरस गन्धस्पर्शा एव विशिष्ट परिणामानुगृहीत सतो मूर्तिव्ययदेशभाजो भवन्ति। तत्वार्यसूत्र ५३ के भाष्य की सिद्धिसेनगणि टीका में। २-पुद्गला एव रूपिणो भवन्ति । --तत्त्वार्थसूत्र अ ५ सू ४ का भाष्य । ३-न मूर्तिव्यतिरिकेण पुद्गला सन्ति। --तत्त्वार्थसूत्र ५ ४ के भाष्य पर सिद्धिसेनगणि टीका। ४-अरूपा पुद्गला न भवन्ति । -तत्त्वार्थसूत्र ५ ४ को सिद्धिसेनगणि टीका। ५-यत्र रूप परिणाम तत्रावश्यन्तया स्पर्शरसगन्धरपि भाव्यम्, अत सहचरमेतच्चतुष्टयम् । --तत्त्वार्थसूत्र ५३ की भाष्योपरि सिद्धिसेनगणि टीका।
SR No.010273
Book TitleJain Padarth Vigyan me Pudgal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1960
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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