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________________ भूमिका पुद्गल और जीव द्रव्यो के असत्यात या अनन्त प्रदेश होते है । ___'काल' को अस्तिकाय नहीं कहा गया, उमका कारण यह है कि वह बहुप्रदेशी द्रव्य नहीं है। 'उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य' इस त्रिपदी की कमौटी पर वह द्रव्य तो ठहर जाता है क्योकि उसका अस्तित्व है और उसमें उत्पाद और व्यय रूप पर्याय या अवस्यान्तर होता है फिर भी वह अस्तिकाय नही। काल की इकाई 'समय' है। 'समय' से सूक्ष्मतम काल और नहीं होता। जिस तरह माला का अगुलियो के बीच में रहा हुअा मनका पूर्व के मनका के साथ श्रावद्ध नहीं होता और न वाद के मनका के साथ आवद्ध होता है उमी तरह वर्तमान समय अतीत और अनागत समय के साथ प्रावद्ध नही होता है। इस तरह काल कभी प्रदेशो का समूह नही हो सकता। वह काय-रहित होता है। इसलिए काल द्रव्य 'अस्तिकाय' नहीं कहलाता। धर्म, अधर्म और आकाश द्रव्य ध्प और छाया की तरह लोक में मर्वत्र विस्तृत है। जीव स्वदेह प्रमाण होता है, वह स्वदेह में मर्वत्र फैला होता है। पुद्गल द्रव्य भी लोक में सर्वत्र है पर वह धर्म आदि की तरह विस्तीर्ण द्रव्य नही है। काल का क्षेत्र ढाई द्वीप है। वह मारी दिशायो में वर्तन करता है। जैन दर्शन के अनुसार लोक अनादि अनन्त है और वह इन्ही पट् द्रव्यो से निर्मित है-निप्पन्न है। इन द्रव्यो की संख्या में हानि-वृद्धि नहीं होती। लोक के बाहर केवल अकाशास्तिकाय है, अन्य द्रव्य नही।
SR No.010273
Book TitleJain Padarth Vigyan me Pudgal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1960
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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