SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन पदार्थ-विज्ञान में पुद्गल अन्तिम अविभाज्य होता है परमाणु कहलाता है। परमाणुत्रो में परम्पर मिलने और विछुडने का सामार्थ्य होता है। इस गलनमिलन गुण या स्वभाव के कारण परमाणु मिल कर स्कदरुप हो जाते हैं और स्कद मे विछुडकर पुन परमाणु स्प हो जाते है। पुद्गलास्तिकाय के अतिरिक्त चार अस्तिकायो के खण्ड नही क्येि जा सकते। वे ऐमे द्रव्य है जिनकी शरीर-रचना में वधन, नाच, गांठ जैसी कोई वस्तु नही होती। जैसे धूप और छाया में नाथ आदि नहीं होती वैने ही ये निरवन्व द्रव्य है । परमाणु पुद्गल द्रव्य की परम सूक्ष्म, अन्तिम, अखण्ड इकाई है। इस इकाई रूप में परमाणु अन्य द्रव्यो के माप का सावन माना जाता है। एक परमाणु जितने म्यान को रोकता है उसे प्रदेश कहते है। परमाणु मिल कर स्कव रूप धारण करते है। यदि एक पुद्गल का माप निकालना हो तो परमाणु मे मापने पर वह अमख्यात प्रदेनी होगा। इनी तरह अन्य अस्तिकाय भी परमाणु ने मापे जा मक्ते हैं। इन माप से धर्म, अधर्म, आकाश और जीव मग. अनस्यात, अमस्यात और अनन्त प्रदेगी है। ___ उपर्युक्त छ द्रव्यो में काल के मिवा वाकी पाँच के माथ 'अस्तिकाय' मना है। प्रश्न है इन की अस्तिकाय मना क्यो? जो द्रव्य अपने गुणों के माथ त्रिकाल में अवस्थित रहता है और जो बहुप्रदेगी होता है उसे अस्तिकाय कहते है। यह ऊपर बताया जा चुका है कि परमाणु के माप मे किन तरह धर्म, अधर्म, आकाग,
SR No.010273
Book TitleJain Padarth Vigyan me Pudgal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1960
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy