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________________ ( 68 ) 'भते । यह कैसे? 'जो जीव अधर्मी हैं उनका मोना अच्छा श्री. जो धर्मी हैं उनका जागना अच्छा है। सोना ही अच्छा है या जागना ही अच्छा है यह एकागी उत्तर होता । महावीर ने इस प्रश्न का उत्तर विभाग करके दिया, एकाङ्गी दृष्टि से नहीं दिया। 'द्रव्य से गुण अभिन्न हैं', यदि इस नियम को स्वीकृति दी जाए तो द्रव्य और गुण दो नहीं रहते, एक हो जाते हैं। फिर 'द्रव्य मे गुण'--इस प्रकार की वाक्य-रचना नहीं की जा सकती। द्रव्य से गुण भिन्न है, यदि इस नियम को स्वीकृति दी जाए तो यह गुण इस द्रव्य का है' इस प्रकार की वाक्य-रचना नहीं की जा सकती। भजनावार के अनुसार अभेद और भेद का एकागी नियम स्वीकृत नहीं होता। उसमे अमद और भेद-दोनो की स्वीकृति होती है । द्रव्य श्री. गुण का अभेद मानने पर उनमे विशेष-विशेष्य-भाव नही हो सकता यह प्राशका मजनावाद मे मापेक्ष प्टिकोण से समाहित हो जाती है । नील उत्पल - इस वाक्य मे 'उत्पल' विशेष्य और 'नील' विशेषण है । नील गुरण उत्पल से अभिन्न है, भिर भी उनमे विशेष्य-विशेषणमाव है । 'दाढीवाला मनुष्य पा रहा है'- इस वाक्य-रचना मे मनुष्य' विशेष्य और 'दाढीवाला' विशेषण है। विशेषण विशेष्य से कथचिट पृथक भूत होता ही है । इसलिए द्रव्य और गुण मे कचि भेदाभेद मानने में विशेष्य-विशेषणभाव संबंध वाधा उपस्थित नहीं करता। विधेय प्रतिषेध्य से विरुद्ध नही है । यह स्यावाद की मर्यादा है। जो द्वन्द्व (युगल) विरोधी प्रतीत होते हैं, उनमे परस्पर अविनाभाव संबंध है इस स्थापना के आधार पर अनेकान्त का सिद्धान्त अनन्त विरोधी युगलो को युगपत् रहने की स्वीकृति देता है । अनेकान्तात्मक अर्य की प्रतिपादक वाक्य-पद्धति स्यादवाद है । प्रस्तुत वाक्य-रचना मे विवि, निषेध आदि अनेक विकल्पो द्वारा वस्तुतत्व का नियमन किया जाता है । इस विषय को सप्तमगी के प्रयोग से समझा जा सकता है स्यात् अस्ति एव घट कयचिद् घट है ही। स्यात् नास्ति एव घ८ कयचिद् घ८ नही ही है । स्यात् अस्ति एव घ८ स्यात् नास्ति एव घट -कचिद् घट है ही और कचिद घट नही ही है। स्यात् अवक्तव्य एव घट - कथचित् घट अवक्तव्य ही है। 8 भगवई, 12153,54 ।
SR No.010272
Book TitleJain Nyaya ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherNathmal Muni
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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