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________________ 6 7 8 9 ( 13 ) धारणा निर्णीत विषय की स्थिरता, वासना, संस्कार । स्मृति संस्कार के जागरण से होने वाला 'वह' - इस आकार का बोध | सज्ञा स्मृति और प्रत्यक्ष से होने वाला 'यह वह है' इस श्राकार का बोध चिन्ता 'घूम अग्नि के होने पर ही होता है' इस प्रकार के नियमो का निर्णायक वोध, तर्क या अह । श्रभिनिबोध हेतु से होने वाला साध्य का ज्ञान, अनुमान 10 हेतु चार प्रकार का होता है विधि-सायक विधि हेतु 2 विधि-सायक निषेव हेतु 3 નિષેધસાવ વિધિ હેતુ निषेव-साधक निषेध हेतु 4 विषय-विषयी के सन्निपात और दर्शन के बिना अवग्रह नही होता । श्रवग्रह के बिना ईहा, ईहा के बिना अवाय, अवाय के विना धारणा, धारणा के बिना स्मृति, स्मृति के विना सज्ञा, सजा के विना चिन्ता और चिन्ता के बिना श्रभिनिबोध नही हो सकता । श्रुतज्ञान का विस्तार दो रूपो मे हुआ है एक स्यादवाद और दूसरा नय | जैन तार्किको ने प्रमेय की व्यवस्था श्रुतज्ञान ( आगम) के आधार पर की, स्याद्वाद और नय के द्वारा की । प्रामाणिक की परिषद् मे श्रुतज्ञान का ही आलवन लिया गया और उसी के आधार पर न्याय का विकास हुआ । उसे इस भाषा मे प्रस्तुत किया जा सकता है -- ' जावइया वयरणपहा तावइया हुति सुर्यावगप्पा' जितने वचन के प्रकार है उतने ही श्रुतज्ञान के विकल्प हैं। वे असख्य है । प्रमाण भी असख्य हो सकते हैं । हम सूक्ष्म दृष्टि से देखें तो यह प्राप्त होगा कि देखने, सोचने और कहने के जितने निर्णायक प्रकार हैं उतने प्रमाण हैं । नय के विषय मे यही बात कही गई है 'जावइया वयरणपहा तावइया हुति नयवाया' जितने बोलने के प्रकार उतने ही नय । जितने आशय जितनी स्वीकृतिया उतने ही नय । इसका अर्थ यह हुआ कि जैन न्याय के अनुसार प्रमाणो का सख्याकरण सापेक्ष है । X X X 1 क्या श्रागम से अतीन्द्रियज्ञान प्राप्त होता है ? क्या अतीन्द्रियज्ञानी वारणी का प्रयोग नही करता ? क्या उसके विकल्प नही होते ? आगम से अतीन्द्रिय तत्वों का ज्ञान प्राप्त हो सकता है ज्ञान की उपलब्धि का साधन नही है । उसका साधन है किन्तु वह अतीन्द्रियध्यान का सूक्ष्मतम
SR No.010272
Book TitleJain Nyaya ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherNathmal Muni
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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