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________________ ( 5 ) (3) असत्कार्यवाद, मत्कार्यवाद और सदसत्कार्यवाद ये भी प्रमेय-व्यवस्था के भेद की स्वीकृतिया हैं । सात्य दर्शन सत्कार्यवादी या परिणामवादी है । उसके अनुसार कारण मे कार्य की सत्ता होती है। सर्वथा असत्कार्य की उत्पत्ति नही हो सकती । उपादान मे कार्य का सद्भाव होता है। सब कारणो से सब कार्य उत्पन्न नही होते । समर्थ कारण भी शक्य कार्य को ही उत्पन्न करता है, अत कारण मे कार्य की सत्ता अविवाद है।' कार्य कारण मे शक्तिरूप से रहता है। वैशेषिक दर्शन असत्कार्यवादी (प्रारमवादी) है । उसके अनुसार परमाणुओ के सयोग से एक-अवयवी द्रव्य उत्पन्न होता है । उत्पत्ति से पूर्व उसकी सत्ता नही होती। बौद्ध दर्शन भी असत्कार्यवादी है। उसके अनुसार पूर्व और उत्तर क्षण के साय वर्तमान क्षण का वास्तविक सबंध नहीं होता। जन दर्शन सदसत्कार्यवादी (परिणामिनित्यत्ववादी) है। द्रव्याथिक न4 की दृष्टि से सत् नष्ट नहीं होता और असत् उत्पन्न नहीं होता, इसलिए सत्कार्यवाद सगत है। पर्यायाथिक नय की दृष्टि से सत् विनष्ट और असत् उत्पन्न होता रहता है, इसलिए असत्कार्यवाद भी संगत है। जीव चैतन्य गुण से कभी च्युत नहीं होता, इसलिए कहा जा सकता है कि सत् का विनाश नही होता और असत् का उत्पाद नही होता। जीव निरतर विविध अवस्याओ मे परिमन करता रहता है, इसलिए कहा जा सकता है कि सत् का विनाश होता है और असत् का उत्पाद होता है 110 ___ सत्कार्यवाद के अनुसार दही दूध का परिणमन मात्र है, इसलिए उन दोनो मे कोई भेद नहीं है। असत्कार्यवाद के अनुसार वस्त्र धागो से निष्पन्न एक कार्य है, इसलिए वह कारण से भिन्न है । सदसत्कार्यवाद के अनुसार मिट्टी के परमाणुगो मे घट और ५८०५ मे परिणमन करने की योग्यता है, पर मिट्टी के पिंडरूप पर्याय मे पटरूप में परिणत होने की साक्षात् योग्यता नही है। उसमे घटरूप मे 7 सांख्यकारिका, 9 असदकरणादुपादानग्रहणात् सर्वसम्भावाभावात् । शक्तस्य शक्यकरणात् कारणभावाच्च सत्कार्यम् ॥ 8 ५चास्तिकाय, 15 भावस्स परिय पासी, पत्थि अभावस्स उप्पादो। 9 पचास्तिकाय, 19 ઇવ સો વાતો પ્રસવો નીવર્સી ત્યિ ૩ખાવો ! 10 ५चास्तिकाय, 60 एव सदा विरणासो असदो जीवस्स होई उत्पादो।
SR No.010272
Book TitleJain Nyaya ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherNathmal Muni
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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