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________________ ( 100 ) प्रागम प्राचार्य मिद्धसेन ने परोक्ष के दो भेद स्वीकार किए हैं अनुमान और श्रुत-बागम 135 स्मृति, प्रत्यभिना और तर्क का उन्होने परोक्ष प्रमाण के प्रकार के ९५ मे उल्लेख नही किया है । परोक्ष के उक्त पाच प्रकारों की व्यवस्था प्राचार्य अकलक ने की। उसका आधार तत्वार्थसूत्र और नदीसूत्र मे वणित मतिनान रहा 135 स्मृति, प्रत्यभिजा, तर्क और अनुमान ये चार मतिजान के प्रकार हैं और भागम श्रुतजान है । अकलक ने अनुमान को श्रुतनान के अन्तर्गत माना है। 7 सिद्धान्त चक्रवर्ती नेमिचन्द्र ने श्रुतमान के दो प्रकार किए हैं शब्दालगज-आगम और अलिगज-अनुमान 138 जन ताकिको ने श्रागम का व्यात्या लौकिक और लोकोत्तर दोनो स्तरों पर की है । प्राप्त के वचन से होने वाला अर्थ-सवेदन श्रागम है। उपचार से प्राप्त-वचन भी आगम है। लोकोत्तर भूमिका मे अतीन्द्रियज्ञानी प्राप्त होता है और लौकिक भूमिका में प्राप्त की कसौटी अविसवादित्व है। जो जिस विषय मे अविमवादी (अवचक) है वह उस विषय मे प्राप्त है ।39 जन तक-५२५९। मे ३२१ रीयनान और अन्य की अपारयता इन दोनो को कोई स्थान नही है। उसमें मानवीयज्ञान और अन्य की मनुष्यकृतता-ये दोनो प्रतिष्ठित हैं । द पौद्गलिक है पुद्गल का एक परिणामन है। पुद्गल का परिमन होने के कारण वह अनित्य है । जव शब्द ही अनित्य है तब कोई भी आदात्मक अन्य नित्य कैसे हो सकता है ? वयाकर॥ मानते हैं कि पनि क्षणिक है। उनसे अर्थवो नही हो सकता। वर्ष से अतिरिक्त किन्तु वाभिव्यग्य जो अर्थ-प्रत्यायक नित्य शब्द है वह स्फोट है । वध्वनि से वह अभिव्यक्त होता है । उससे अर्थबोध होता है । 35 न्यायावतार, २लोक, 5,8,91 36 (क) तत्वार्य, सूत्र 1113 । (ख) नदी, सूत्र 541 37. न्यायविनिश्चय, श्लोक 473 सर्वमतच्छतज्ञानमनुमान तयागम । 38 गोमटसार (जीवकाण्ड), गाया 315 । 39 प्राप्तमीमामा, लोक 78, अष्टशती यो यत्राविसवादक स तत्राप्त , तत परोऽनाप्त । तत्त्वप्रतिपादनमविवाद ।
SR No.010272
Book TitleJain Nyaya ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherNathmal Muni
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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