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________________ परिचय और वर्गीकरण में की। काव्य संस्कृत-ग्रन्थ 'भद्रबाहु श्रुत केवली चरित' (रत्ननन्दि कृत) का हिन्दी रूपान्तर है। प्रस्तुत काव्य में जैनों के पंचम श्रु त केवली भद्रबाहु के चरित्र पर प्रकाश डाला गया है। यह चार संधियों का प्रबन्धकाव्य है। इस में अनेक प्रकार के छन्दों का प्रयोग किया गया है। धन्यकुमार चरित्र यह कवि खुशालचन्द्र की एकार्थकाव्य कृति है। इसमें रचनाकाल का निर्देश नहीं किया गया है, परन्तु अनुमानतः यह यशोधर चरित (विक्रम संवत् १७८१) की उत्तरवर्ती रचना है। कथानक ब्रह्म नेमिदत्त के 'धन्य कुमार चरित्र के अनुसार है। रचना सर्गबद्ध है, जो पाँच सर्गों में पूर्ण है। नायक धन्यकुमार के नाम पर काव्य का नामकरण हुआ है। इसमें नायक के समग्र जीवन का चित्र समाहित है। धन्यकुमार का उद्दाम एवं अनवरत संघर्ष इस काव्य का प्राण है। यह मूलतः दोहा-चौपई छन्द में रचित है। यत्र-तत्र कुछ अन्य छन्दों का भी प्रयोग हुआ है । भाषा अत्यन्त सहज और सरल है । १. संवत सत्रहसो असी, ऊपरि और है तीन । २. भद्रबाहु चरित्र, पृष्ठ ६६ । वही, पृष्ठ ६६ । दोहा, चौपई, सवैया (३१ मात्रा), गीता, चाल, छप्पय, पद्धड़ी, नाराच, भुजंगप्रयात, सोरठा, अडिल्ल, सवैया (२३ मात्रा), कुंडली आदि । प्रकाशक-श्री रघुवीर सिंह जैन, श्री वीर जैन साहित्य कार्यालय, हिसार (पंजाब)। धन्यकुमार चरित्र, पृष्ठ ६१ |
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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