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________________ ६२ जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन कथामूलक नहीं चरित्रमूलक काव्य है, जिसमें महावीर स्वामी के प्रमुख गणधर गौतम' का चरित्र वर्णित है । इसकी रचना विक्रम संवत् १७८२ में हुई । संस्कृत में अभ्र पंडित ने 'लब्धि विधान व्रत कथा' का निर्माण किया था, उसी के आधार पर हर्षब्रह्म का उपदेश पाकर कवि किशनसिंह ने इसका सर्जन किया। यह प्रबन्धकाव्य व्रत की महिमा पर प्रकाश डालता है । गौतम गणधर ने पूर्व पर्याय में लब्धि विधान व्रत किया था और उसी के फलस्वरूप वर्तमान भव में उन्हें गणधर पद प्राप्त हुआ। पुण्य-धर्मादि का फल मधुर होता है। प्राणी जैसा शुभाशुभ कर्म करता है, उसका फल भी वैसा ही मिलता है-इसी तथ्य की पुष्टि काव्य से होती है। इस रचना में तेरह प्रकार के छन्दों का प्रयोग हुआ है । वैसे यह दोहाचौपई पद्धति पर लिखी गई है । सम्पूर्ण काव्य में चौपई छन्द की प्रधानता है।' भद्रवाह चरित्र ऐतिहासिक आधार पर रचित प्रस्तुत ग्रन्थ एक सामान्य कोटि का प्रबन्धकाव्य है, जिसकी रचना कवि किशनसिंह ने विक्रम संवत् १७८३ १. शुभ वयासिय सत्रह सौ समे, -लब्धि विधान व्रत कथा, पद्य २२५, पृष्ठ ३१ । २. कथा संस्कृत 'यह अभ्र पंडित ने कीनी। हरष ब्रह्म उपदेश पाय सुख कर रचि लीनी॥ -वही, पद्य २२३, पृष्ठ ३० । ३. चौपई प्रमुख इह कथन की, भाषा विविध बनाय के। -वही, पद्य २२३, पृष्ठ ३० । ४. श्री शीतलसागरजी महाराज द्वारा सम्पादित तथा वि० सं० २०२३ में श्री दिगम्बर जैन पुस्तकालय, सांगानेर (जयपुर) द्वारा प्रकाशित ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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