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________________ ५६ युग-मीमांसा इन लक्षण-ग्रन्थों में नये चिन्तन, नये दृष्टिकोण या महत्त्वपूर्ण देन के अभाव की झलक है । 'काव्य-शास्त्र के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण देन हिन्दी रीतिशास्त्र की नहीं है । कुछ महत्त्वपूर्ण धारणाओं को छोड़कर अधिकांश परम्परा-पालन है, परन्तु काव्य-सिद्धान्तों को दृष्टि में रख कर लक्षण देते हुए या बिना लक्षण के जो हिन्दी काव्य लिखा गया है, वह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । 'इन रीति-ग्रन्थों के कर्ता भावुक, सहृदय और निपुण कवि थे। उनका उद्देश्य कविता करना था, न कि काव्यांगों का शास्त्रीय पद्धति पर निरूपण करना । अतः उनके द्वारा बड़ा भारी कार्य यह हुआ कि रसों (विशेषतः शृंगार रस) और अलंकारों के बहुत ही सरस और हृदयग्राही उदाहरण प्रचुर परिमाण में प्रस्तुत हुए। ऐसे सरस और मनोहर उदाहरण संस्कृत के सारे लक्षणग्रन्थों से चुनकर इकट्ठे करें तो भी उनकी इतनी संख्या नहीं होगी। रीतिमुक्त या स्वच्छन्द काव्य-धारा विवेच्य युग के रीतिबद्ध काव्य का जितना मूल्य है, उससे भी अधिक मूल्य रीतिमुक्त काव्य का है । रीतिबद्ध कवियों के लिए काव्य केवल साध्य था, जबकि रीतिमुक्त कवियों के लिए वह साधन तथा साध्य दोनों था।' स्वछन्द धारा के कवियों में कुछ कवि प्रेम-दशा का अपने ढंग से निरूपण करने वाले थे और कुछ कवि प्रेम से परे जीवन के नाना क्षेत्रों में रमण करने वाले। रीति की बद्ध परम्परा को तोड़कर स्वतंत्र वायुमंडल में विचरण कर काव्य में जीवन और जिन्दादिली भरने वाले ये ही सच्चे कवि थे। कुछ कवि मध्यम मार्ग के अनुसरणकर्ता थे। ये न रीतिबद्ध थे, न रीतिविरुद्ध । ऐसे कवियों को पं० विश्वनाथप्रसाद मिश्र ने रीतिसिद्ध १. डॉ० भगीरथ मिश्र : हिन्दी-रीति-साहित्य', पृष्ठ २२ । २. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल : हिन्दी साहित्य का इतिहास, पृष्ठ २१६ । " देखिए-पं० विश्वनाथ प्रसाद मिश्र : रसखानि ग्रन्थावली, प्रस्तावना।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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