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________________ ४० जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन विशेषतः दलित-शोषित वर्ग का मन मोह लिया। फलत: अनेक हिन्दू ईसाई धर्म के अनुयायी हो गये। ईसाई धर्म के इस द्रुत प्रचार को हिन्दू धर्म के सजग प्रहरी सहन न कर सके । वे कुम्भकर्णी निद्रा से जग कर धर्म-संग्राम में कूद पड़े । भारतीय विभूतियाँ अपनी धार्मिक एवं सामाजिक क्षति से परिचित हो गयीं और भारत के कोने-कोने में पुनरुत्थान की लहर दौड़ गयी। ब्रह्मसमाज, आर्यसमाज, प्रार्थना-समाज, रामकृष्णमिशन और थीयोसोफिकल सोसायटी की स्थापना हुई । इन संस्थाओं ने हिन्दू धर्म को विशुद्ध रूप देकर उसकी प्राचीनता एवं पवित्रता के संदेश को न केवल भारत में ही, प्रत्युत अमेरिका तथा योरुप तक पहुंचा दिया। इस प्रकार भारतीय संतों, मनीषियों एवं सुधारकों ने हिन्दू धर्म को क्षतिग्रस्त होने से बचा ही नहीं लिया, उसे पुनः जीवित कर दिया। ___ जिस प्रकार मध्ययुग में मुसलमानों के दमन-चक्र से और प्राचीन काल में बौद्धधर्म के पृथकत्व से हिन्दू धर्म बचकर जीवित रहा, उसी प्रकार आधुनिक युग में इस्लाम धर्म को थोपने और ईसाई धर्म के प्रचार करने के बावजूद भी यह धर्म जीवित रहा। आलोच्य प्रबन्धकाव्य और धर्म उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि उस युग में धर्म संकटग्रस्त था । इस्लाम धर्म की कट्टरता और ईसाई धर्म के प्रभाव के फलस्वरूप हिन्दू धर्म पराजित होकर भी विजयी हुआ। संतों की वाणी ने जनता को मुसलमान और ईसाई होने से बचा लिया। 'एक दीर्घकालीन १. देखिए-डॉ० ईश्वरीप्रसाद : भारतवर्ष का नवीन इतिहास, पृष्ठ ४४४ । . देखिए-बी० एन० लूनिया : भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति का विकास, पृष्ठ ४४२-४४३ । ३. वही, पृष्ठ ४४३-४४ ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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