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________________ युग-मीमांसा समाज के लोग विभिन्न कर्मों में रत थे । उसमें वधिक भी होते थे, जिनके पास छुरी-खुरपी, कटार, वरछी, भाले, तलवार आदि अनेक हथियार होते थे। देवी के सामने पशुओं की बलि भी दी जाती थी। ___ समाज में पाखण्डी साधुओं का अभाव नहीं था। अनेक ढोंगी साधु समाज को ठगने और अपनी ओर आकृष्ट करने के लिए झूठी तपस्या में रत रहते थे। तात्कालिक समाज में सामान्यत: स्त्रियों की दशा बड़ी शोच्य और दयनीय थी। अबला होने के कारण उनका शील भंग करना कोई बड़ी बात नहीं थी। अनेक स्त्रियाँ सबला भी होती थीं और उनका अपहरण करना या उनका सतीत्व छीन लेना कोई बच्चों का खेल नहीं था। इतना ही नहीं, वे सच्चे माने में वीरांगना थीं और रणांगन में प्रयाण करने वाले अपने पतियों को स्वामिधर्म पालने, समर-भूमि से पीठ न दिखाने, मृत्यु को महोत्सव मानने के लिये उत्प्रेरित किया करती थीं। तत्त्वतः उस युग का समाज ह्रासोन्मुख था। शासक वर्ग के अत्याचारों से वह कराह उठा था । वह विकल और अशान्त था। धनी, शक्तिशाली और अधिकार-सम्पन्न व्यक्ति निरंकुश और पथभ्रष्ट थे; गरीब और असहाय पिस रहे थे । नारी की लाज सुरक्षित नहीं थी । पक्षपात और निरंकुशता की वृद्धि हो रही थी। धर्म कराह रहा था। धार्मिक अवस्था राजनीतिक व सामाजिक परिस्थितियों के साथ-साथ धर्म भी पतनोन्मुख हो चला था। तत्कालीन भारत में एक बार हिन्दू धर्म खतरे में पड़ गया १. यशोधर चरित, पद्य ६३६ । वही, पद्य १३८ से १४० । पार्श्वपुराण, पद्य ६६ से ६६, पृष्ठ १३ । ४. वही, पद्य ८३-८४, पृष्ठ ११ । ५. शील कथा, पृष्ठ ३२ । ६. सीता चरित, पद्य १४१३ से १४१७, पृष्ठ ७७ ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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