SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६ जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन वे क्षणभर में ही काम के शिकार हो जाते थे। उनके पास दूतियाँ भी होती थीं। दूतियों का काम था-अपने स्वामी की मनचाही सुन्दरी को हर सम्भव प्रलोभन देकर उनके पास ले आना । बसंत ऋतु में बंसंतोत्सव मनाने की प्रथा प्रचलित थी, फाग खेला जाता था जिसमें राजा और प्रजा दोनों शामिल होते थे। धनी पुरुषों और राजा-महाराजाओं के विवाह बड़े ठाठ-बाट से सम्पन्न होते थे। उनका और उनकी सवारियों का साज-शृगार अद्भुत होता था । वर-वधू दोनों पक्षों के घरों की सजावट मनोरम होती थी। 'बंदनवार बाँधे जाते थे, मोतियों से चौक पूरा जाता था, भाट विरुदावली गाते थे, सभी लोग दूलह-दुलहिन को शुभाशीर्वाद देते थे। पुरोहित टीका लगाता था और उसे दक्षिणा में रत्नाभूषण मिलते थे । आँगन के बीच चन्दन के खम्भ प्रस्थापित किये जाते थे, जिनके ऊपर चन्द्रोपम मंडप बनाया जाता था। दूलह-दुलहिन का नीचे से ऊपर तक शृगार किया जाता था। नाच-गान के बीच बारात की सवारी निकलती थी, जिसका अद्भुत ठाठ सभी को अखण्ड रस में डुबा लेता था आदि-आदि । ___समाज में भूखे पेट सो रहने वालों की संख्या कम न थी। उन्हें जब भी और जैसा भी मिल जाता था, उससे अपनी क्षुधा निवारित कर लेते थे। क्षुत्क्षामकंठों की खाद्य, अखाद्य या स्वाद की ओर दृष्टि नहीं जाती थी। चाकरी करने वाले लोगों के हृदय में ग्लानि और असंतोष की आंधी चलती थी। वे अपने जीवन को धिक्कारते थे और चाकर से कूकर की योनि अच्छी समझते थे। ३. पार १. शील कथा, पृष्ठ ३० । २. वही, पृष्ठ ३१-३२ । पार्श्वपुराण, पद्य १६, पृष्ठ ५१ । ४, नेमिनाथ मंगल, पृष्ठ २-३ तथा नेमिचन्द्रिका (आसकरण), पृष्ठ ६ से १३। माता हू वृथा जन्यों, बह्यो मास नौ भार । चाकर ते कूकर भलो, ध्रिग म्हारो जमवार । -सीता चरित, पद्य ७१, पृष्ठ ६ ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy