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________________ २६८ जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन होरी धूल कालो धूर । कारो रोरी होली संभाल कोतवाल सभार रोली कोतवार अधिकतर रचनाओं में 'ण' के स्थान पर 'न' का प्रयोग दिखायी देता है, जैसे : प्राण शरण प्रान तारन शरण पुराण पुण्य सरन पुरान तारण वीणा वीना पुन्य गुण रण रन राजस्थान में लिखी जाने वाली रचनाओं (यशोधर चरित, श्रेणिक चरित, 'नेमीश्वर रास', 'सीता चरित' आदि) में प्रायः 'ण' के स्थान पर 'ण' यहाँ तक कि 'न' के स्थान पर 'ण' के प्रयोग की प्रवृत्ति भी दिखायी देती है, जैसे: औगुण प्राणी कारण प्राणी कारण अवगुण क्षण षिण प्रवीण प्रवीण पुण्य पुण्य प्रमाण परमाण शरणागत सरणागत X रानी जाने जाणे राणी घणी घनी पालन पालण
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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