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________________ चरित्र-योजना २०७ 'शीलकथा' की एक दुती अपने स्वामी की आज्ञाकारिणी, दूतीकर्म में पटु किन्तु आत्मबल से रहित नारी है । वह हर सम्भव उपाय से स्त्रियों को उड़ाने का प्रयास करती है। काम बिगड़ता देख वह घृणित से घृणित कार्य करने के लिए तत्पर रहती है । एक शब्द में वह दुश्चरित्रा है।। अधम चरित्रों के सम्बन्ध में यह पहले कहा जा चुका है कि प्रबन्धकाव्यों में इनका महत्त्व कम नहीं है । ये अपने कार्य एवं व्यवहार की दृष्टि से धिक्कृत अवश्य हैं, किन्तु काव्य के प्रमुख पात्रों को गौरव इन्हीं की योजना से मिलता है। ऊपर अतिमानव और मानव चरित्रों पर दृष्टि डाली गयी है, परन्तु विवेच्य प्रबन्धों में इनके अलावा मानवीकृत और प्रतीकीकृत चरित्र भी उपलब्ध होते हैं, जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता है। मानवीकृत चरित्र : 'अमानव' को 'मानव' गुणों के आरोप करने की प्रक्रिया को मानवीकरण कहते हैं ।' सूक्ष्म भावों, सूक्ष्म-स्थूल वस्तुओं, प्राकृतिक उपादानों, शारीरिक अवयवों, दार्शनिक तत्त्वों आदि सभी का मानवीकरण सम्भव है । जैन कवियों ने दर्शन के गहन-सूक्ष्म तत्त्वों को पात्र रूप में चित्रित कर, उसकी विभिन्न प्रवृत्तियों एवं स्थितियों का विश्लेषण कर मानव के १. शीलकथा, पृष्ठ ३१-३२ । २. ताकी सास सौं ऐसी कही । मेरी बात सुनो तुम सही। बहू तुम्हारे घर में जोय । कुल नाशक जानों वह सोय ।। तुमको खबर कछू अब नहीं । हम देखी निज नैनन सही। नित प्रति राज कुवर घर जाय । तहां करै व्यभिचार बनाय ।। -वही, पृष्ठ ३३ । • देखिए-हिन्दी साहित्य कोश, पृष्ठ ५८६ ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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