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________________ २०६ जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन वह जातिगत गुणों से शून्य, चंचल प्रकृति की, कुचक्र में विश्वास रखने वाली और ममता रहित नारी है । वह अपने पति और सास को बड़े भाव से निवेदन करती हुई विष के मोदक खिलाती है और उनके मरणोपरान्त झूठा रुदन-विलाप करती है ।' इस प्रकार अमृतमती का चरित्र कलुषित है । उसमें अवगुण ही अवगुण हैं, केवल एक गुण है रूप-सौन्दर्य का, परन्तु वह स्वर्ण-कटार किस काम की, जिसका आलिंगनमात्र प्राणान्त का कारण बन जाता हो । हंसद्वीप की राजरानी _ 'शीलकथा' में हंसद्वीप की राजरानी सुखानन्दकुमार के साथ जो जाल रचती है, उससे उसके धिक्कृत चरित्र का आभास मिलता है। वह कुमार के रूप पर आसक्त है । पर-पुरुष से रतिदान माँगने वाली वह चंचल प्रकृति की त्रिया है। वह स्वयं कपटरूपिणी और कलंकिनी है; किन्तु उस कलंक के टीके को सुखानन्द कुमार से पौंछकर स्वयं को निर्दोष सिद्ध करने का ढोंग भरने में भी पटु है। नाथ नाथ कर मूरछा खाय......... X पीव पीव करि रोवै जोय । तुम बिन दीस नहिं कोय ॥ -यशोधर चरित, पद्य ४४३ से ४४७, संधि ४ । २. शीलकथा, पृष्ठ ४६ । ३. (क) कपट रूप मन क्रोध कर, भूषण दिये उतार ॥ क्रोध विवस बोलत भई, वचन भयानक मार ॥ जाने चीर दक्खिनी फारे, गज मोतिन हार विदारे।। अरु देही नखन विदारी, ऐसी जो भई वह नारी ।। -वही, पृष्ठ ५०। (ख) महाराज अरज सुन लीज । इह अरजी पंचित दीजै ॥ वह सेठ कुमर जो आयो । मैंने रनिवास बुलायो। वह तो मद को अति भारी । मैं शील धुरंधर नारी।। जब देख स्वरूप जो मोही । कर यो बेहाल जो सोही । -वही, पृष्ठ ५० ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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