SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भूमिका २३ का कथापट झीना है; किन्तु काव्यात्मक एवं कलात्मक रंग गहरा है । 'साध्य एवं साधन दोनों दृष्टियों से भगवतीदास के खण्डकाव्य और 'कामायनी' एक ही परम्परा के काव्य हैं । अन्तर मात्र इतना ही है कि भगवतीदास की कृतियाँ सीमित लक्ष्य के कारण खण्डकाव्य हुईं, वहाँ प्रसाद की कृति उद्देश्य की महत्ता के कारण महाकाव्य हो गयी । भगवतीदास महाकाव्य की रचना न करने पर भी महाकवि के गौरवभागी हैं । " 'भैया' कवि के अतिरिक्त विनोदीलाल के खण्डकाव्य भी भाव, भाषा एवं शैली की दृष्टि से असंदिग्ध रूप से उच्चकोटि के हैं । प्रबन्धों की भाषा विवेच्य प्रबन्धकाव्यों की भाषा के सन्दर्भ में भी दो शब्द कह देना उचित है। जैन कवि अतीत काल से ही प्रायः जनवाणी में अपने भावों को अभिव्यक्त करते आये हैं । उन्होंने सदैव लोक-भाषा को प्रमुखता दी है। यही इस काल में भी हुआ है । आलोच्य युग में ब्रजभाषा एक विशाल भू-भाग की साहित्यिक भाषा बन चुकी थी । राज-समाज में भी उसे उचित सम्मान प्राप्त होने लग गया था । वह अपने सहज लालित्य, माधुर्य एवं सौकुमार्य से प्रान्त प्रान्त के लोगों को विमुग्ध कर रही थी । वह देश की समस्त भाषाओं में लोकभाषा के रूप में शीर्ष स्थान पर प्रतिष्ठित होने की अधिकारिणी बन गयी थी । तत्कालीन अनेक जैन कवियों ने भी इसी भाषा का आश्रय लिया । हमारे अधिकांश कवियों की भाषा सरस ब्रजभाषा है । भाषागत उत्कर्ष की दृष्टि से कवि 'भूवरदास', 'विनोदीलाल', 'पाण्डे लालचन्द', 'नथमल बिलाला', 'दौलतराम', 'मनोहरदास' आदि कवि समादरणीय हैं। उनकी भाषा सहज-सरस ब्रजभाषा है । भाषा में प्रयुक्त अलंकार उसकी कान्ति को १. डॉ० सियाराम तिवारी : हिन्दी के मध्यकालीन खण्डकाव्य, पृष्ठ ३६५ ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy