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________________ २२ जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन विरचित 'श्रेणिक चरित' जो अनेक दृष्टियों से एक सुन्दर काव्य है। 'ढालों' में रचित होने के कारण इस काव्य का सौन्दर्य अधिक बढ़ गया है। खण्डकाव्य यह सच है कि हमारे युग में रचित महाकाव्य और एकार्थकाव्य संख्या में कम हैं, खण्डकाव्य संख्या में अधिक । जहाँ महाकाव्य तथा एकार्थकाव्य प्रायः पुराण, चरित, चौपई और रास नामान्त हैं, वहाँ खण्डकाव्य कथा, चरित, चौपई, मंगल, ब्याह, चन्द्रिका, वेलि, बारहमासा, संवाद तथा छन्दसंख्या (शतअष्टोत्तरी, बत्तीसी, पच्चीसी) आदि अनेक नामान्त हैं । जैसे उनके प्रतिपाद्य विषय अनेक हैं, वैसे ही उनमें प्रयुक्त शैलियाँ भी अनेक हैं। आलोच्य खण्डकाव्यों में भाव-प्रधान खण्डकाव्यों की संख्या सर्वाधिक है । ये अनुभूति की तीव्रता से सम्पुटित हैं, हमारे हृदय को सीधे छूते हैं और अधिक समय तक रसमग्न रखते हैं। इनमें प्रयुक्त अधिकांश छन्दों एवं 'ढालों' का नाद-सौन्दर्य सहृदयों को विमोहित करता है । इस प्रकार के खण्डकाव्यों में आसकरण कृत 'नेमिचन्द्रिका', विनोदीलाल कृत 'राजुलपच्चीसी', 'नेमि-ब्याह', 'नेमिनाथ मंगल', 'नेमि-राजुल बारहमासा संवाद', जिनहर्ष कृत 'नेमि-राजुल बारहमासा' आदि उल्लेखनीय हैं। भाव-प्रधान खण्डकाव्यों को देखते हुए वर्णन-प्रधान या घटना-प्रधान खण्डकाव्य नाममात्र को ही उपलब्ध हैं। 'बंकचोर की कथा' (नथमल) वर्णन-प्रधान तथा 'चेतन कर्म चरित्र' (भैया भगवतीदास) घटना-प्रधान खण्डकाव्य कहे जा सकते हैं । समन्वयात्मक खण्डकाव्यों में भारामल्ल कृत 'शीलकथा', भैया भगवतीदास विरचित 'सूआ बत्तीसी', 'मधुविन्दुक चौपई' एवं 'पंचेन्द्रिय संवाद' सुन्दर हैं । खण्डकाव्य के क्षेत्र में भैया भगवतीदास को अधिक प्रसिद्धि मिली है। उन्होंने पाँच खण्डकाव्यों का प्रणयन किया है। उनके पाँचों खण्डकाव्यों " (१) शतअष्टोत्तरी (२) चेतन कर्म चरित्र (३) मधुबिन्दुक चौपई (४) सूआ बत्तीसी और (५) पंचेन्द्रिय संवाद ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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